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________________ ८४ रायचन्द्र जैनशास्त्रमालायाम् पदार्थ- एते] ये [पृथिवीकायिकाद्याः] पृथिवीआदिक [पञ्चविधाः] पांच प्रकारके [जीवनिकायाः] जीवोंके जो भेद हैं सो [मनःपरिणामविरहिताः] मनोयोगके विकल्पोंसे रहित [एकेन्द्रिया जीवाः] सिद्धान्तमें एकेन्द्रिय जीव [भणिताः] कहे गये हैं। भावार्थ-पृथिवीकायादिक जो पांच प्रकारके स्थावर जीव हैं ते स्पर्शेन्द्रियावरण के क्षयोपशममात्रसे अन्य चार इन्द्रियोंके आवरणके उदयसे और मनआवरणके उदयसे एकेन्द्रिय जीव और अमनस्क मनरहित हैं। ___ आगें कोई ऐसा जाने कि एकेन्द्रिय जीवोंके चैतन्यताका अस्तित्व नहीं रहता होगा उसको दृष्टान्तपूर्वक चेतना दिखाते हैं। अंडेसु पवढुंता गम्भत्था माणुसा य मुच्छगया । जारिसया तारिसया जीवा एगदिया णेयाः॥११३ ॥ ___ संस्कृतछाया. अण्डेषु प्रवर्द्धमाना गर्भस्था मानुषाश्च मूच्छी गताः । यादृशास्तादृशा जीवा एकेन्द्रिया ज्ञेयाः ।। ११३ ।। पदार्थ-[यादृशाः] जिसप्रकार [अण्डेषु] पक्षियोंके अंडोंमें [प्रवर्द्धमानाः] बढतेहुये जो जीव हैं [तादृशाः] उसीप्रकार [एकेन्द्रियाः] एकेन्द्रियजातिके [जीवाः] जीव [ज्ञेयाः] जानने । भावार्थ-जैसें अंडेमें जीव बढता है परन्तु उपरिसे उसके उस्खासादिक वा जीव मालूम नहिं होता उसीप्रकार एकेन्द्रिय जीव प्रगट नहिं जाना जाता परन्तु अन्तर गुप्त जानलेना-जैसे वनस्पति अपनी हरितादि अवस्थावोंसे जीवत्व भावका अनुमान जनाती है। तैसें सब स्थावर अपने जीवनगुणगर्भित हैं [च] तथा [यादृशाः] जैसें [गभंस्थाः ] गर्भमें रहतेहुये जीव उपरिसे मालूम नहिं होते. जैसे जैसे गर्भ बढता है तैसें तैसें उसमें जीवका अनुमान किया जाता है. तथा [मूछ गताः] मूर्छाको प्राप्त हुये [मानुपाः] मनुष्य जैसें मृतकसदृश दीखते हैं परन्तु अन्तरविषै जीव गर्भित हैं । उसीप्रकार पांच प्रकारके स्थावरोंमें भी उपरिसे जीवकी चेष्टा मालूम नहीं होती. परन्तु आगमसे तथा उन जीवोंकी प्रफुल्लादि अवस्थावोंसे चैतन्य मालूम होता है। आगे द्विइन्द्रिय जीवोंके भेद दिखाते हैं। संवुकमादुवाहा संखा सप्पी अपादगा य किमी। जाणंति रसं फासं जे ते वे इंदिया जीवाः ॥११४॥ संस्कृतछाया. संवूकमातृवाहाः शङ्खाः सुक्तयोऽपादकाः कृमयः । जानन्ति रसं स्पर्श ये ते द्वीन्द्रियाः जीवाः ॥ ११४ ॥ पदार्थ-[ये] जो [संवूकमातृवाहाः] संवूक कहिये क्षुद्रशंख अर मातृवाह तथा
SR No.010451
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Panchastikaya Samay Sara
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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