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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
आगें मोक्षमार्गका संक्षेप कथन करते हैं ।
सम्मत्तणाणजुत्तं चारित्तं रागदोसपरिहीणं । मोक्खस्स हवदि मग्गो भव्वाणं लडबुद्धीणं ॥ १०६ ॥
संस्कृतछाया.
सम्यक्त्वज्ञानयुक्तं चारित्रं रागद्वेपपरिहीनं ।
मोक्षस्य भवति मार्गो भव्यानां लब्धबुद्धीनां ॥ १०६ ॥
पदार्थ – [ सम्यक्त्वज्ञानयुक्तं ] सम्यक्त्व कहिये श्रद्धान यथार्थ वस्तुका परिच्छेदनकर सहित जो [ चारित्रं ] आचरण है सो [ मोक्षस्य मार्गः ] मोक्षका मार्ग [ भवति ] है अर्थात् सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यक्चारित्र इन तीनोंहीका जब एकवार परिणमन होता है तब ही मोक्षमार्ग होता है। कैसा है ज्ञानदर्शनयुक्त चारित्र [ रागद्वेषपरिहीनं] इष्ट अनिष्ट पदार्थोंमें रागद्वेष रहित समतारस गर्भित है । ऐसा मोक्षमार्ग किनके होता है ? [लब्धबुद्धीनां] प्राप्त भई है खपरविवेकभेदविज्ञानबुद्धि जिनको ऐसे [ भव्यानां ] मोक्षमार्गके सन्मुख जे जीव हैं तिनके होता है ।
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भावार्थ - चारित्र वही है जो दर्शन ज्ञानसहित है दर्शनज्ञानके विना जो चारित्र है सो मिथ्या चारित्र है । जो चारित्र है वही चारित्र है न कि मिथ्याचारित्र चारित्र होता है । और चारित्र वही है जो रागद्वेषरहित समतारससंयुक्त है । जो कपायर सगर्भित है सो चारित्र नहीं है संक्लेशरूप है । जो ऐसा चारित्र है सो सकलकर्मक्षयलक्षण मोक्षस्वरूप है न कि कर्मबन्धरूप है । जो ज्ञानदर्शनयुक्त चारित्र है वह ही उत्तम मार्ग है न कि संसारका मार्ग भला है। जो मोक्षमार्ग है सो निकट संसारी जीवोंको होता है अभव्य वा दूर भव्योंको नहिं होता । जिनको भेद विज्ञान है उन ही भव्य जीवों को होता है स्वपरज्ञानशून्य अज्ञानीको नहिं होता । जिनके कपाय मूलसत्तासे क्षीण हो गया है ही मोक्षमार्ग है कपायी जीवोंके नहिं होता । ये आठ प्रकारके मोक्षसाधनका नियम जानना ।
उनके -
आगें सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रका स्वरूप कहते हैं ।
सम्मत्तं सद्दहणं भावाणं तेसिमधिगमो णाणं ।
चारित्तं समभावो विसयेसु विरूढमग्गाणं ॥ १०७ ॥
संस्कृतछाया.
सम्यक्त्वं श्रद्धानं भावानां तेपामधिगमो ज्ञानं ।
चारित्रं समभावो विषयेष्वविरूढ मार्गाणाम् ॥ १०७ ॥
पदार्थ – [ भावानां ] पद्रव्य पंचास्तिकाय नवपदार्थोंका जो [ श्रद्धानं] प्रतीतिपूर्व दृढता सो [ सम्यक्त्वं ] सम्यग्दर्शन है [तेपां] उन ही पदार्थोंका जो [ अधिगमः ]