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________________ ७६ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् __पदार्थ-[कालः ] व्यवहारकाल जो है सो [परिणामभवः] जीव पुद्गलोंके परिणामसे उत्पन्न है [परिणामः ] जीव पुद्गलका परिणाम जो है सो [द्रव्यकालसंभूतः] निश्चयकालाणुरूप द्रव्यकालसे उत्पन्न है। [द्वयोः] निश्चय और व्यवहार कालका [एपः] यह [स्वभावः] स्वभाव है । [कालः] व्यवहारकाल [क्षणभङ्गुरः] समय समय विनाशीक है और [नियतः] निश्चयकाल जो है सो अविनाशी है।। भावार्थ-जो क्रमसे अतिसूक्ष्म हुवा प्रवत्र्ते है वह तो व्यवहारकाल है और उस व्यवहारकालका जो आधार है सो निश्चयकाल कहाता है । यद्यपि व्यवहारकाल है सो निश्चयकालका पर्याय है तथापि जीवपुद्गलके परिणामोंसे वह जाना जाता है। इसकारण जीव पुद्गलोंके नवजीर्णतारूप परिणामोंसे उत्पन्न हुवा कहा जाता है। और जीव पुद्गलोंका जो परिणमन है सो बाह्यमें द्रव्यकालके होतेसंते समयपर्यायमें उत्पन्न है इसकारण यह बात सिद्ध हुई कि समयादिरूप जो व्यवहारकाल है सो तो जीवपुद्गलोंके परिणामोंसे प्रगट किया जाता है और निश्चयकाल जो है सो समयादि व्यवहारकालके अविनाभावसे अस्तित्वको धरै है क्योंकि पर्यायसे पर्यायीका अस्तित्व ज्ञात होता है । इनमेंसे व्यवहारकाल क्षणविनश्वर है क्योंकि पर्यायस्वरूपसे सूक्ष्मपर्याय उतने मात्र ही है जितने कि समयावलिकादि हैं। और निश्चयकाल जो है सो नित्य है क्योंकि अपने गुणपर्यायस्वरूप द्रव्यसे सदा अविनाशी है। आगे कालद्रव्यका स्वरूप नित्यानित्यका भेद करके दिखाया जाता है। . कालो त्ति य ववदेसो सम्भावपरूवगो हवदि णिच्चो । उप्पण्णप्पडंसी अवरो दीहंतरहाई ॥ १०१॥ संस्कृतछाया. काल इति च व्यपदेशः सद्भावप्ररूपको भवति नित्यः । उत्पन्नप्रध्वंस्यपरो दीर्घान्तरस्थायी ॥ १०१ ॥ पदार्थ-[च] और [काल इति] काल ऐसा जो [व्यपदेशः] नाम है सो । निश्चयकाल [नित्यः] अविनाशी है भावार्थ-जैसें सिंहशब्द दो अक्षरका है सो सिंह नामा पदार्थका दिखानेवाला है जब कोई सिंहशब्दको कहै तब ही सिंहका ज्ञान होता है उसी प्रकार काल ये दो अक्षरके कहनेसे नित्य कालपदार्थ जाना जाता है । जिस प्रकार अन्य जीवादि द्रव्य हैं उस प्रकार एक कालद्रव्य भी निश्चयनयसे है. [अपरः] दूसरा जो समयरूप व्यवहारकाल है सो [उत्पन्नमध्वंसी] उपजता और विनशता है । तथा [दीर्घान्तरस्थायी] समयोंकी परंपरासे बहुत स्थिरतारूप भी कहा जाता है । भावार्थ-व्यवहारकाल सबसे सूक्ष्म समय नामवाला है सो उपजै भी है विनशै भी है और निश्चयकालका पर्याय है. पर्याय उत्पादव्ययरूप सिद्धान्तमें कहा गया है. उस सम
SR No.010451
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Panchastikaya Samay Sara
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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