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________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् संस्कृतछाया. ज्ञानी ज्ञानं च सदार्थान्तरितेत्वन्योऽन्यस्य । द्वयोरचेतनत्वं प्रसजति सम्यग् जिनावमतं ।। ४८ ॥ पदार्थ-[ज्ञानी] आत्मा [च] और [ज्ञानं] चैतन्यगुणका [ सदा ] सदाकाल [अर्थान्तरिते] सर्वथा प्रकारभेद होय [तु अन्योऽन्यस्य ] तो परम्पर [योः ] ज्ञानी और ज्ञानके [अचेतनत्वं ] जड़भाव [प्रसजति ] होता है [सम्यक् ] यथार्थमं यह [जिनावमतं] जिनेन्द्र भगवान्का कथन है । भावार्थ-जैसें अग्निद्रव्यमें उप्णता गुण है. जो इस अग्नि और उप्णतागुणमें पृथक्ता होती तो इंधनको जला नहिं सक्ती थी. जो प्रथमसे ही उप्णगुण जुदा होता तो काहेसे जलावे ? और जो अग्नि जुदी होती तो उप्णगुण किसके आश्रय रहै ? निराश्रय होकर वह भी जलानेकी क्रियासे रहित हो जाता. क्योंकि गुणगुणी परस्पर जुदा होनेपर कार्य करनेको असमर्थ होते हैं। जो दोनोंकी एकता होय तो जलानेकी क्रिया समर्थ होय. उसीप्रकार ज्ञानी और ज्ञान परस्पर जुदा होनेपर जाननेकी क्रियामें असमर्थता होती है. ज्ञानविना ज्ञानी कैसे जाने ? और ज्ञानीविना ज्ञान निराश्रय होता तो यह भी जाननरूप क्रियामें असमर्थ होता. ज्ञानी और ज्ञानके परस्पर जुदा होनेपर दोनों अचेतन होते हैं । और जो कोई यहां यह कहैं कि पृथक्रूप दांतसे काटनेपर पुरुष ही काटनहारा कहलाता है. इसीप्रकार पृथक्प ज्ञानकेद्वारा आत्माको जाननेहारा मानो तो इसमें क्या दोप है ? ताका उत्तर-काटनेकी क्रियामें दांत वाह्य निमित्त है. उपादान काटनेकी शक्ति पुरुषमें है जो पुरुषमें काटनेकी शक्ति न होती तो दांत कुछ कार्यकारी नहीं होते-इसलिये पुरुषका गुणप्रधान है, उस अपने गुणसे पुरुपके एकता है. इसी कारण ज्ञानी और ज्ञानके एक संबंध है. पुरुप और दांतकासा संबंध नहीं है. गुणगुणी वे ही कहाते हैं जिनके प्रदेशोंकी एकता होय. ज्ञान और ज्ञानीमें संयोगसम्बन्ध नहीं है, तन्मयभाव है। आगें ज्ञान और ज्ञानीमें सर्वथाप्रकार भेद है. परन्तु मिलापकर एक है ऐसी एकताको निषेध करते हैं ण हि सो समवायादो अत्यंतरिदो दुणाणदो णाणी। अण्णाणीति च वयणं एगत्तप्पसाधगं होदि ॥ ४९ ॥ संस्कृतछाया. न हि सः समवायादर्थान्तरितस्तु ज्ञानतो ज्ञानी । अज्ञानीति च वचनमेकत्वप्रसाधकं भवति ॥४९॥ पदार्थ- [सः] वह [हि ] निश्चयसें [ज्ञानी] चैतन्यस्वरूप आत्मा [समवायात्] अपने मिलापसे [ज्ञानतः] ज्ञानगुणसे [अर्थान्तरितस्तु] भिन्नस्वरूप तो [न] नहीं है
SR No.010451
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Panchastikaya Samay Sara
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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