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________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् संस्कृतछाया. व्यपगतपञ्चवर्णरसो व्यपगतद्विगन्धाष्टस्पर्शश्च । अगुरुलघुको अमूर्तो वर्तनलक्षणश्च काल इति ॥ २४ ।। पदार्थ-[कालः] निश्चय काल [इति ] इस प्रकार जानना कि [व्यपगतपञ्चवर्णरसः] नहीं है पांच वर्ण और पांच रस जिसमें (च) और [व्यपगतद्विगन्धाष्टस्पर्शः] नहीं है दोगन्ध आठ स्पर्शगुण जिसमें, फिर कैसा है ? [अगुरुलघुकः] पड्गुणी हानि वृद्धिरूप अगुरुलघुगुणसंयुक्त है । [च] फिर कैसा है निश्चयकाल ? [वर्तनलक्षणः] अन्य द्रव्योंके परिणमावनेको बाह्य निमित्त है लक्षण जिसका, ऐसा यह लक्षण कालाणुरूप निश्चय कालद्रव्यका जानना । ___ भावार्थ-कालद्रव्य अन्य द्रव्योंकी परिणतिको सहाई है, कैसे ? जैसे कि-शीतकालमें शिष्यजन पठनक्रिया अपने आप करते हैं, तिनको वहिरंगमें अग्नि सहाय होता है. तथा जैसें कुंभकारका चाक आपही” फिरता है, तिसके परिभ्रमणको सहाय नीचेंकी कीली होती है. इसी प्रकार ही सब द्रव्योंकी परणतिको निमित्तभूत कालद्रव्य है । ___ यहां कोई प्रश्नकरै कि-लोकाकाशसे बाहर कालद्रव्य नहीं हैं तहाँ आकाश किसकी सहायतासे परिणमता है ? तिसका उत्तर-जैसे-कुंभकारका चाक एक जगहँ फिराया जाता है, परन्तु वह चाक सर्वांग फिरता है. तथा जैसे-एक जगहँ स्पर्शेन्द्रियका मनोज्ञ विषय होता है, परन्तु सुखका अनुभव सर्वांग होता है। तथा-सर्प एक जगहँ काटता है, परन्तु विष सर्वाग चढता है । तथा फोड़े आदि व्याधि एक जगहँ होती हैं, परन्तु वेदना सर्वांगमें होती हैतैसें ही कालद्रव्य लोकाकाशमें तिष्ठता है, परन्तु अलोकाकाशकी परिणतिको भी निमित्त कारणरूप सहाय होता है। फिर यहां कोई प्रश्न करै कि-कालद्रव्य अन्यद्रव्योंकी परणतिको तो सहाय है, परन्तु कालद्रव्यकी परणतिको कौन सहाय है ? .. उत्तर-कालको कालही सहाय है. जैसे कि आकाशको आधार आकाश ही है. तथा जैसें ज्ञान सूर्य रत्न दीपादिक पदार्थ स्वपरप्रकाशक होते हैं. इनके प्रकाशको अन्य वस्तु सहाय नहिं होती है-तैसें ही कालद्रव्य भी स्वपरिणतिको स्वयं ही सहाय है. इसकी परिणतिको अन्य निमित्त नहीं हैं। फिर कोई प्रश्नकरै कि-जैसें काल अपनी परिणतिको आप सहायक है, तैसें अन्य जीवादिक द्रव्य भी अपनी परिणतिको सहाय क्यों नहीं होवे ? कालकी सहायता क्यों बताते हो? उत्तर-कालद्रव्यका विशेष गुण यही हैं जो कि अन्य पदार्थोंकी परिणतिको निमित्त
SR No.010451
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Panchastikaya Samay Sara
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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