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________________ 64 - -- - आख्यायिका - आख्यायिका का तात्पर्य है, ऐतिहासिक वृत्त। आ. मामझुसार "संस्कृत भाषा में निब्ध गद्यमयी रचना आख्यायिका कहलाती है। उसमें शब्द, अर्थ तथा समाप्त अक्लिष्ट एवं भ्रव्य हो, विषय उदात्त हो और उच्छ्वातों में विभक्त हो, इसमें नायक आत्मवृत्त स्वयं कहता है। समय - समय पर भविष्य में होने वाली घटनाजों के सूचक वक्त्र तथा अपरवक्त्र नामक छन्द रहते हैं। वह कवि के किन्हीं अभिप्रायपूर्प कथनों से अंकित, कन्याहरप, संगाम, विपलम्भ और अभ्युदय के वर्णनों से युक्त होती है।' आख्या यिका में आत्मवृत्त नायक ही कहे यह दण्डी आवश्यक नहीं मानते। वे कथा तथा आख्यायिका को एक ही जाति के दो नाम मानते हैं। इसके अतिरिक्त दण्डी के मत में कन्याहरण आदि भी कथा अथवा आख्यायिका के विशिष्ट गुप न होकर सर्गबन्ध की तरह सामान्य गुप ही है तथा कविस्वभावकृत चिन्ह विशेष कहीं भी दूषित नहीं होते हैं। जैनाचार्य हेमचन्द्र ने आख्यायिका के लिए भामह सम्मत 5 बातों का उल्लेख किया है। उनके अनुतार - जिसमें नायक आत्मवृत्त स्वयं कहता हो तथा भविष्य में होने वाली घटनाओं के सूचक वक्त्रादि छन्दों से युक्त, उच्वासों में विभक्त, संस्कृत भाषा में निब्द गद्य - पद्यमयी रचना - - - - - - - - - - - - - 1. काव्यालंकार, 1/25-27 2. काव्यादर्श, 1/25-30
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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