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________________ 38 वाग्भट द्वितीय अपने समय के उच्चकोटि के विद्वान वाग्भट द्वितीय के विषय में पूर्वोक्त जैनाचार्यों की अपेक्षा कम जानकारी उपलब्ध होती है। इन्होंने "काव्यानुशासन" नामक अलंकार गन्थ की रचना की थी। ये अभिनव वाग्भट के नाम से भी जाने जाते है। आचार्य प्रियव्रत शर्मा ने भिन्न - भिन्न विद्वानों द्वारा मान्य अनेक वाग्भटों की सूची प्रस्तुत की है, जिसमें "काव्यानुशासन" तथा "छन्दोनुशासन आदि के कर्ता बैन कुलोत्पन्न नेमिकुमार के पुत्र वाग्भट का भी उल्लेख किया है। इसी प्रकार पं0 नायराम प्रेमी ने चार वाग्भटों में से एक को"काव्यानुशासन तथा उन्दोनुशासन' का कर्ता स्वीकार किया है। वाग्भट द्वितीय का समय विक्रम की 14वीं शताब्दी है, क्योंकि उन्होंने उदात्तालंकार के प्रसंग में स्वोपज्ञ “अलंकार तिलक" नामक टीका में "अलंकार-महोदधि से एक पमें उद्धत किया है, जो "अलंका रमहोदधि के अतिरिक्त अन्य कहीं नहीं पाया जाता है। अलंकार-महोदधि का लेखन समाप्ति काल वि. सं. 1282 है। इसी प्रकार पं. आशाधर जी की रचना "राजीमती दिपलम्भ' अथवा 'राजीमती परित्याग" के कुछ पद्यों का उल्लेख मी इसमें किया गया है।° पं. आशाधर जी के अनगारधर्मामृत की भव्यकमदचन्द्रिका नामक टीका का लेखनकाल वि.सं0 1300 है। अतः वाग्भट दितीय का 1. तीर्थंकर महावीर तथा उनकी आचार्य परम्परा, चतुर्थ खंड, पृ. 37 2. वाग्भट विवेचन, पु. 281 3. जैनाचार्यों का अलंकारशास्त्र में योगदान से उद्धत, पृ. 39 + वही. पृ. 40 5 वही, पृ. 40 6. तीर्थंकर महावीर तथा उनकी आचार्य परम्परा, चतुर्थ संड, पृ. 39
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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