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सप्तम तरंग में, अनुपात, यमक, श्लेष तथा वक्रोक्ति नामक चार शब्दालंकारों का तभेद - प्रभेद विवेचन किया है।
अष्टम तरंग में, अतिशयोक्ति आदि 70 अर्थालंकारों का सलक्षपोदाहरप सभेद - प्रभेद निरूपप किया है। अन्त में, अलंकारदोषों का विवेचन करते हुए गन्य समाप्त हुआ है।