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________________ 34 इनके धार्मिक विषयों पर भी, दिवेक - पादप तथा विवेककलिका नाम के दो सुभा धित तंगह है, जिनते ज्ञात होता है कि इनका कवि उपनाम “विवुधचन्द्र" था।' अलंकारमहोदधि आचार्य नरेन्द्रप्रभसूरि द्वारा प्रपीत ग्रन्थों में सर्वोच्च, यह एक अलंकार विषयक गन्थ है। लेखक द्वारा इस गन्य की मौलिकता का कोई दावा नहीं किया गया है। वह कहता है कि ऐसी कोई बात नहीं है कि जिस पर अलंकारशास्त्री पूर्वागों ने नहीं विवेचन किया और इसलिये यह रचना उनकी उक्तियों का चयन मात्र ही है।2 “अलंकारमहोदधि पर काव्यप्रकाश की छाया प्रतीत होती है। अत: डा. भोगीलाल साडेतरा का यह कथन कि "अलंका रमहोदधि" का सम्पूर्ण तृतीय तरंग काव्यप्रकाश के चौथे अध्याय का एक लम्बा तथा सरलीकृत संस्करण है., उचित ही है। उपर्युक्त कथन यह भी स्पष्ट करता है कि "अलंकारमहोदधि" "काव्यप्रकाश जैते कुह गन्ध की अपेक्षा सरल है। 1. वही, पृ. 106 2. नास्ति प्राच्यैरलंकारकारैराविष्कृतं न यत्। कृतिस्तु तदचः सारसंगहव्यसनादियम्।। अलंकारमहोदधि, 1/21 महा. वस्तु. कासा. व संस्कृत सा. मैं उसकी देन, विभाग 3, अध्याय 14, पृ. 225
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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