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________________ 33 "अलंका रमहोदधि" नामक गन्ध की रचना की थी। इसका रचना काल वि. सं. 1280 (ई. सन् 1223) है एवं इतकी स्वोपज्ञ टीका का लेखनकाल वि.सं. 1282 (ई. सन् 1225) है। अत : नरेन्दप्रभसरि का समय विक्रम की 13वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध निश्चित होता है। अलंकारमहोदधि के अतिरिक्त मी, नरेन्द्रप्रभसरि ने 'काकुत्स्थकेलि नामक एक अन्य गन्थ की भी रचना की थी, ऐसा राजशेखरसरि की न्यायकन्दलीपंजिका से उद्धृत प्रलोक से ज्ञात होता है। यह एक नाटक था जिसकी कोई प्रति अद्यावधि मिली नहीं है। इसके अतिरिक्त नरेन्द्रप्रमसरि द्वारा रची हुई वस्तुपाल पर दो स्तुतियाँ "वस्तुपाल प्रशस्ति भी हैं। साथ ही गिरनार के वस्तुपाल के एक शिलालेख के श्लोक भी नरेन्द्रप्रभतरि रचित हैं। 1. "तेषां निर्देशादथ सद्गुरूपां श्रीवस्तुपालस्य मुदे तदेतत् । चकार लिप्यक्षरसंनिविष्टं सरिनरेन्द्रपभनामधेय ः।। वही, 1/19 जैन साहित्य का बहद इतिहास, भाग 5, पृ. 109 3 नयन-वसु-सर 1282 वर्षे निष्पलायाः प्रमापमेतस्याः । अनि सहस्त्रचतुष्ट्यमनुष्टुभामुपरि पञ्चाती ||1|| - अलंकारमहोदधि गन्धान्तप्रशस्ति, पृष्ठ. 340 + तत्य गुरोः प्रिय शिष्य ः प्रभुनरेन्द्रप्रभा प्रभावाट्यः । योडलंका रमहोदधिमकरोत काकुरस्थकेलिं च ।। महामात्य प्रस्तुपाल का साहित्यमण्डल व संस्कृत साहित्य में उसकी देन, विभाग2 अध्याय5,(पृ. 104) 5. महामात्य वस्तुपाल का सा. व संस्कृत सा. में उसकी देन, विभाग 2,अ.5 पृ. 106
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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