SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 381
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 370 आ. रामचन्द्रगुणचन्द्र के अनुसार कुलजा, दिव्या, क्षत्रिया व वेश्या चार प्रकार की नायिका होती हैं। उनमें से अन्तिम अर्थात वेश्या नायिका ललितोदात्त ही होती है और प्रथम अर्थात कुलजा नायिका उदात्त होती है। घोष दोनों दिव्या और क्षत्रिया धीरा, ललिता व उदात्ता तीन प्रकार की होती है।' धीरप्रशान्त नायक के समान धीरशान्त नायिका दर्पनीय नहीं होती है। इन नायिकामों के विशेष भेद को बताते हुए नाट्यदर्पपकार लिखते हैं कि - प्रहसन से भिन्न रूपकों में गपिका नायिका अनुरागिपी ही निबद्ध करनी चाहिए। जैसे मृच्छकटिक में चारूदत्त की वसन्तसेना अनुरागिणी नायिका है। प्रहप्तन में अनुराग रहित गपिका नायिका भी हो सकती है। राजा और दिव्य नायकों के साथ गणिका नायिका का वर्णन नहीं करना चाहिए। कहीं - कहीं यह गपिका नायिका यदि दिव्य हो तो उसका राजा के साथ सम्बन्ध वर्पन हो सकता है। जैसे - उर्वशी पुरूरवा की नायिका है। इन कुलजादि नायिकाओं में से प्रत्येक के भुग्धा, मध्या व प्रगल्भा तीन-तीन भेद होते हैं। कुल मिलाकर बारह भेद हो जाते हैं। 1. नायिका कलजा दिव्या धत्रिया पण्यकामिनी। अन्तिमा ललितोदात्ता पूर्वोदात्ता त्रिधा परे।। हि नाट्यदर्पय 4/19. 2. रागिण्येवाप्रहसने नृपे दिव्ये च न प्रभौ। गपिका क्वापि दिव्यातु भवेदेषा महीभुजः।। हि, नाट्यदर्पप 4/20 3. मुग्धा मध्या प्रगल्भेति त्रिविधाः स्युरिमाः पुनः । वही, 4/21 पूर्वार्द्ध
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy