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________________ 346 लेषालक वर्ग - अविशेष, विरोध, अधिक, वक, व्याज, उचित, असम्भव, अवयव, तत्व और विरोधाभासा' आ. स्ययक ने अर्थालंकारों को प्रमुखतः 5 वर्गों में विभाजित किया है -(1) साट्नयमूलक, (2) विरोधमलक, ( 3) अखलामूलक, (4) विशिष्टवाक्यसन्निवेशमलक, (5) लोकन्यायमूलक और (6) गटार्यप्रतीतिमलका अनाचार्य नरेन्द्रप्रभसरि ने अर्थालंकारों को छ: वर्गों में विभाजित किया है -(1) अतिशयोक्तिमलक, ( 2) विरोधमलक, (3) श्रृंखलामलक, (4) लोकन्यायमलक और (5) रसवदादि। अतिशयोक्तिमूलक - अतिशयोक्ति, सहोक्ति, उपमा, अनन्वय, उपमेयोपमा, स्मरप, संशय, भान्तिमान, उल्लेख, रूपक, अपहनुति, परिपाम, उत्प्रेधा, तुल्ययोगिता, दीपक, निर्भाना, प्रतिवस्तुपमा, दृष्टान्त, अर्थान्तरन्यास, व्यतिरेक, विनोक्ति, परिकर, समातोक्ति, अप्रस्तुतप्रशंसा, पर्यायोक्त, आक्षेप, व्याजस्तुति व श्लेषा 1. वही, 10/2 2. जैनाचार्यों का अलंकारशास्त्र में योगदान, पृ. 227 3 द्रष्टव्य, अलंकारमहोदय,
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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