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१५.५ इलेष : “अर्थभेदभिन्नानां शब्दानां भइ. गाभइ. गाभ्यां यगपदाक्ति : श्लेष:" अर्थात अर्थभेद वाले भिन्न - भिन्न शब्दों की मंग से अथवा अभंग ते युगपद् उति को पलेष कहते हैं। आ. हेमचन्द्र का श्लेष अलंकार का यह स्वरूप आ. मम्मट के लक्षप' की अपेधा संक्षिप्त और सरल है। आ. हेमचन्द्र ने इलेष के 8 मेद बतलाए है - वर्ष, पद, लिंग, भाषा, प्रकृति, प्रत्यय, विभक्ति और वचन श्लेष। मम्म्ट ने प्रकृति, प्रत्यय आदि का भेद न होने से 8 प्रकार के सभंगश्लेषों से भिन्न अभंगश्लेष रूप नवम् भेद भी माना है, जबकि आ. हेमचन्द्र ने आठों भेदों को भंग से और अभंग ते द्विधा विभक्त कर दिया है। आ. हेमचन्द्र द्वारा किया गया माषाश्लेष के 57 मेदों का कथन अन्य आचार्यों की तुलना में सर्वाधिक है। यह भेद बहुत महत्वपूर्ण हैं। संस्कृत-प्राकृत भाषाश्लेष का उदाहरप वृत्ति में देकर संस्कृत-मागधी, संस्कृत-पैशाची, संस्कृत-भारतेनी, संस्कृत-अपभ्रंश के श्लेषगत उदाहरण विवेक टीका में दिये हैं।
358 वक्रोक्ति : आ. हेमचन्द्र ने लिखा है - "उक्तस्यान्येनान्यधाउलेषाक्तिर्वक्रोक्ति:- अर्धाद वक्ता के द्वारा कही हुई बात को लेष के
1. वाच्यभेदेने भिन्ना यद युगपभाषणस्पृशाः। पिलष्यन्ति शब्दाः श्लेषो सावक्षरादिभिरष्टधा।।
काव्यप्रकाश 9/118 2. स द वर्षपदलिंगभाषाप्रकृतिपत्यविभक्तिवचनरुपापा शब्दाना भंगादर्भगाच्च देधा भवति।
काव्यानु. वृत्ति, पृ. 324 3 काव्यप्रकाश, वृत्ति, पृ. 416 तथा वही, 9/119
यदक्तमन्यथावाक्यमन्यथाऽन्येन योज्यते। श्लेषेप काक्वा वाया मा कोक्तिस्तथा द्विधा।।