________________
320
आचार्य हेमचन्द ने स्वरचित्र के "हस्व-एक-स्वर" का उदाहरप “जयमदनग्जदमन" इत्यादि वृत्ति में देकर दीर्घ एक स्वर, द्वित्वर, त्रिस्वर आदि स्वरनियमों के उदाहरप मी विवेक टीका में दिये हैं तथा व्यंजन नियम का एक उदाहरण “ननोननुन्नो नुन्नोनो" इत्यादि देकर टीका में
अनेक उदाहरप दिये हैं और स्थान-नियम के भी अनेक उदाहरण टीका में
दिये हैं। गतप्रत्यागत आ दि गतिचित्र को भी अनेक प्रभेदों में विभक्त किया है, जैसे - पदगत प्रत्यागत के अतिरिक्त, अर्धगतपत्यागत, श्लोकगतप्रत्यागत, सर्वतोभद्र, अर्धभम, तुरंगपदागत, गोमत्रिका-पादगोमत्रिका, अर्धगोमत्रिका, श्लोकगोमत्रिका आदि।' इन सभी के उदाहरप भी विवेक टीका में दिये गये हैं तथा कहा गया है कि आदिपद से गज-पद, रथ-पद आदि को समझना चाहिए। खड्ग मुरजबन आदि आकृति को आकार के अन्तर्गत प्रतिपादित किया गया है तथा उदाहरप भी दिए गए हैं। इसी प्रकार मुसल, धनुष, बाप, चक, पद्म आदि आकार के उदाहरप टीका मे दिए गए हैं। च्युत को + प्रकार का बतलाया गया है -- मात्राच्युत, अर्द्धमात्रच्युत, बिन्दुच्युत और वर्पच्युत।' आचार्य हेमचन्द्र ने इनके उदाहरण वृत्ति मे ही प्रस्तुत किये हैं। गढचित्र को भी किया गट, कारकगढ़, सम्बन्धगट और पाद्गूट मेद से चार प्रकार का बतलाकर ' सोदाहरप प्रतिपादन
किया है।
I. काव्यानुशासन, टीका, पृ. 310-313 2. आदिगृहपादराजपदरथपदादी नि ज्ञातव्यानि।
दही, पृ. 313 3 च्युतं मात्रार्धम्मात्रा बिन्दुवर्षगतत्वेन तुर्धा।