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________________ 318 आचार्य मम्म्ट ने अनुप्रास का विवेचन करते हुए वर्षों की समानता या आवृत्ति को अनुपास कहा है। उन्होंने ठेकगत और वृत्तिगत भेद से उसे दो प्रकार का माना है। परन्तु आचार्य हेमचन्द्र इन दोनों को अलग - अलग न मानकर एक ही भेद मानते हैं, वे वृत्त्यनुपात को नहीं मानते। उनका लाटानुपास का प्रतिपादन लगभग मम्म्ट की तरह ही है, किन्तु उन्होंने मम्मट के लाटानुपात के (1) एक समास में, (2) भिन्न समातों में अथवा (3) समास और असमास में प्रातिपदिक पद (नाम)की आवृत्ति - इन भेदों को नहीं माना है, तथापि एक नाम की आवृत्ति एक बार तथा अनेक बार और अनेक नाम की आवृत्ति एक बार तथा अनेक बार के पृथक् - पृथक उदाहरप दिए हैं तथा पद की आवृत्ति के भी एक बार, अनेक बार, अनेक पदों की आवृत्ति एक बार तथा अनेक बार के उदाहरण दिये हैं। 12 यमक : “सत्य न्यार्थानां वपीना अतिक्रमक्ये यमकम्।। अर्थात अर्थ के होने पर भिन्न अर्यवाले वर्षों की कमशः श्रुति (प्रवप ) यमक है। यमक का स्वरूप प्रायः आ. मम्मट के समान है। यमक के भेद - प्रभेदों के सन्दर्भ में मम्मट तथा हेमचन्द्र में पर्याप्त भिन्नता है। मम्मट ने यमक के ।। पादन मेदों का उल्लेख किया है। जबकि आ. हेमचन्द्र ने यमक को 1. वर्षसाम्यमनपातः। ठेकवृत्तिगतो द्विधा। काव्यप्रकाश 9/103-104 2. अर्थे सत्यर्थभिन्नानां वर्षगां सा पुनः श्रुतिः। यमकम। वही, १/416 3. वही, वृत्ति, पृ. 10
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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