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________________ 317 विवेचन किया है। आचार्य हेमचन्द्र ने स्पष्टतः 6 शब्दालंकारों का प्रतिपादन किया है - अनुपास, यमक, चित्र, श्लेष, वक्रोक्ति और पुनरूक्तवदाभासा वे उभयालंकार नहीं मानते हैं। पुनरूक्तवदाभास को उन्होंने शब्दगत अलंकार माना है। आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार 6 शब्दालंकारों का विवेचन इस प्रकार है 31 अनुपात : "व्यंजनात्यावृत्तिरनुपात:" अर्थात व्यंजन की आवृत्ति अनुपास है। व्यंजनों की यह आवृत्ति कई प्रकार की हो सकती है, जैसे - एक व्यंजन की अनेक बार, अनेक व्यंजनों की एक या अनेक बार। सभी प्रकार की आवृत्ति के पृथक् - पृथक उदाहरप दिए गये हैं। "तात्पर्यमात्रमेदिनो नाम्नः पदत्य वा लाटानाम।' अर्थात मात्र तात्पर्य के भेद से होने वाली नाम अथवा पद की आवृत्ति लाटानुपास है। आशय यह है कि शब्दार्थ के अभेद होने पर भी अन्वय मात्र से भिन्न नाम अथवा पद की एक अथवा अनेक की एक बार या अनेक बार आवृत्ति लाट सम्बन्धी अर्थात लाट देश के लोगों को पिय होने से लाटानुपास कहलाती है। - 1. वाग्भटालंकार - शब्दालंकारापां षण्पां तावदाह। षण्पामिति। अनुप्रासयमकचित्रश्लेषवकोक्तिपुनरूक्ताभासानाम्। काव्यानु, वृत्ति, टीम, पृ, 295
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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