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माधुर्य, ओज व प्रसाद के व्यञक वर्षों को क्रममाः उपनागरिका, परूषा व कोमला नामक वृत्ति कहा गया है और अन्य आचार्य इन्हें ही वैदर्भी, गोद्री और पा चाली रीति कहते हैं। जैसा कि कहा गया है -
माधुर्यव्यजकैवरूपनागरिकेष्यते। ओज : प्रकाशकत्तेऽस्तु परूषा कोम्ला परैः।। केषाञ्चिदेता वैदर्भीपमुवा रीतयोमताः।।'
वृत्ति, रीति, मार्ग , संघटना तथा शैली प्रायः समानार्य है। वृत्ति शब्द का प्रयोग उद्भट ने किया है। उन्होंने अपने 'काव्यालंकारसारसंग्रह' मे उपनागरिका, परूषा तथा कोमला नामक तीन वृत्तियों का विवेचन किया है। इन्हीं तीन वृत्तियों को वामन ने तीन प्रकार की रीतियों के रूप में, कुन्तक तथा दण्डी ने तीन प्रकार के मार्गों के रूप में और आनन्दवर्षन ने तीन प्रकार की घटना के रूप में माना है। अत: उदमट की वृत्तियां, वामन की रीतियां, दण्डी और कुन्तक के मार्ग तथा आनन्दवर्धन की संघटना एक ही भाव को व्यक्त करती है।
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1. वही, पृ. 192 . 2. आ. विश्वेश्वरः काव्यप्रकाश, पृ, 405