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प्रस्तुत रचना में अधिकांशतः वर्ग के पंचम वर्षों का प्रयोग किया गया है। अत: यह रचना मार्यगुप की व्यजक है। इसी प्रकार -
दारूपरपे रपन्तं करिदारपकार कृपापं ते। रमपकृते रपरपकी पश्यति तरूपीजनो दिव्यः।।'
इस उदाहरप में रेफ व पकार की बहुलता होने से ये वर्षादि माधुर्य गुप के व्यञ्जक हैं।
किंतु इससे भिन्न ट वर्गादि से युक्त रचना मार्यगुप की व्यञ्चक नहीं होती, यथा -
अकुण्ठोत्कण्ठया पूर्णमाकण्ठं कलकण्ठिमास। कम्बुकण्ठयावर्ष कण्ठेकुरू कण्ठार्तिमुद्र।।
यहाँ श्रृंगार रस के प्रतिम्ल वर्षों का समायोजन होने से माधुर्य गुप नहीं है। इसे मम्म्ट ने प्रतिकूलवर्पता नामक वाक्यदोष
1. वही, पृ. 290 2. वही, पृ. 290