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रेमा वर्णन करने पर नैरन्तर्य विरोध होता है। किन्तु शान्त तथा श्रृंगार के मध्य अन्य रस का वर्णन करने से विरोध समाप्त हो जाता है।'
इसी प्रकार जब दो विरोधी रस अङ्गी रूप में अभिहित हो तो दोष होता है, किन्तु जब एक रस किसी दूसरे प्रधान रस का अंग हो जाता है तो दोष समाप्त हो जाता है।2
___ तदनन्तर निम्नलिखित 8 रसदोषों का आ. हेमचन्द्र ने विवेचन किया है - (I) विभाव और अनुभाव की कष्टकल्पना से अभिव्यक्ति, (2) एक ही रस की पुनः पुनः दीप्ति, (3) अनवसर में रस का विस्तार, (4) अनवसर में रस का विच्छेद, (5) अंग का अतिविस्तार से वर्पन, (6) अंगी (रस) की विस्मृति, (7) अनंग का वर्णन और (8) प्रकृति व्यत्यय।
इनका विवेचन इस प्रकार है -
है।
विभावानुभाव की कष्टकल्पना द्वारा अभिव्यक्ति - इनमें विभाव,
यथा
परिहरति रति मतिं लुनीते स्खलतितरां परिवर्तते च भय ः। इति बत विषमा दशात्य देहं परिभवति प्रसमं किमत्र कुर्मः।।
1. वही, पृ. 162 2. वही, पृ. 164 ॐ वही, 3/3 + वही, पृ. 169