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व्यस्त सम्बन्ध- किन्ही दो पदों में परस्पर सम्बन्धी पटों के
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दर-दर रहने पर "व्यस्त सम्बन्ध" नामक दोष उत्पन्न होता है। यथा - अर्हता में अगगण्य तत्त्ववेत्ता (जिन) देव आप लोगों को सम्पत्ति धन - धान्य प्रदान करें ।।
इस वाक्य में "आध:" और "अर्हताम्" इन दोनों पदों का परस्पर सम्बन्ध होने पर भी दूर - दूर स्थित होने से व्यस्तसम्बन्ध- दोष है।
१४ असम्मित - जहाँ शब्द और अर्थ संतुलित न हो, वहाँ पर विद्वज्जन
असम्मित नामक दोष मानते हैं। यथा - मानसरोवर में निवास करने वाला पक्षी ( हंस) जिसका वाहन है उन (ब्रह्माजी ) के आसन (कमल) को समान लोचनों वाले (अर्थात कमल - नयन जिनदेव) आप लोगों को अन्धकार के शत्रु (सूर्य) के विपधी (राहु) के शत्रु (विष्प) की प्रिया (लक्ष्मी) अर्थात श्री - सम्पत्ति प्रदान करें।
इस श्लोक में कमलनयन हेतु "मानतोकपतथानदेवासनविलोचनः और लक्ष्मी के लिये "तमोरिपुविपक्षारिप्रियां इन दो लम्बे-लम्बे पदों का प्रयोग होने से अतम्मित दोष है।
148 अपक्रम - विभिन्न कार्यों के पूर्वापर कम की लोक प्रतिद मान्यता
का उल्लंघन करके जहाँ पर क्रम में उलट फेर कर दिया जाता है,
• वही, 2/19 2 बाग्भटालड कार 2/20-21