SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ने सोलह पद दोषों का विवेचन किया है। इन सभी जैनाचार्यों ने प्रायः - आचार्य मम्मट द्वारा वर्षित दोषों का अनुकरण करते हुए ही अपना दोष - विवेचन प्रस्तुत किया है। अतः पद दोषों के प्रसंग में जैनाचार्यों ने कोई नवीन तथ्य प्रस्तुत नहीं किया है। पदांशगत दोष - - काव्यप्रकाशकार मम्मट ने पदशगत दोषों श्रुतिकटु निहतार्थ, निरर्थक, अवाचक, अश्लील, संदिग्ध व नेयार्थ - का उल्लेख करते हुए इन्हें सोदाहरण प्रस्तुत किया है। 216 जैनाचार्य हेमचन्द्र व नरेन्द्रप्रभरि ने पदैक देश पदांगशत 8 दोषों को पद - दोष ही स्वीकार किया है। 2 आचार्य नरेन्द्रप्रभसरि ने पदांशगत दोषों को पदगत दोष मानते हुए भी मम्मटोक्त सात पदशतगत दोषों में ते अश्लील को छोड़कर छः दोषों के उदाहरण भी प्रस्तुत किए हैं। 3 ये उदाहरण वही हैं, जिन्हें आचार्य मम्मट ने प्रस्तुत किया है। वाग्भट - द्वितीय ने पदशगत दोषों का कोई उल्लेख नहीं किया है। इस प्रकार ऐसा प्रतीत होता है कि उक्त जैनाचार्य प्रायः पदांश दोषों को पृथक मानने के पक्ष में नहीं है। 1. काव्यप्रकाश, पृ. 295 - 300 - 2. "पुदैकदेशः पदमेव " अलंकारमहोदधि, पृ. 153 3. अलंकारमहोदधि, पृ. 153-154 काव्यानु, पृ. 200 एवं पदैकदेशोऽपि पदमेव " -
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy