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वैते तो आ. मम्म्ट व मा. हेमचन्द्र का रसाभास व भावाभास
विषयक विवेचन मिलता जुलता ही है किन्तु आ. हेमचन्द्र की प्रतिपादन शैली व उदाहरप द्वारा किया गया निरूपप मम्मट की तुलना में अधिक प्रेयस्कर तथा महत्वपूर्ण है। इतने अधिक उदाहरप अन्य किसी भी आचार्य ने नहीं दिये हैं। आ. हेमचन्द्र ने रताभास व भावाभास को समासोक्ति, अर्थान्तरन्यास, उत्प्रेक्षा, रूपक, उपमा, प्रलेष, आदि अलंकारों का जीवित तत्त्व माना है।' नरेन्द्रप्रभतरि का रसाभास - भावाभास विवेचन हेमचन्द्रागर्य के समान है।
हेमचन्द्राचार्य व नरेन्द्रप्रभसरि द्वारा अनौचित्य पद का प्रयोग, आनंदवर्धन के "अनौचित्यादृते नान्यद रसभंगत्य कारपस कथन से प्रभावित प्रतीत होता है।
अस्तु, उक्त जैनाचार्यों द्वारा रस के प्रत्येक अंग पर विचार किया गया है जो कतिपय विशिष्टताओं से युक्त होते हुए भी सामान्यतः भरतपरम्परा का निर्वाहक है।
।• रसाभासस्य भावाभासस्य च समासोक्त्यर्थान्तरन्यासोत्प्रेक्षारूपकोपमाश्लेषादयो जीवितम् ।।
काव्यानुशासन, वृत्ति, पृ. 149 2- आभास रत - भावानामनौचित्यपवर्तनात। आरोपात तिर्यगाथेषु वर्जितश्विन्द्रियेरपि।।
अलंकारमहोदधि 3/53 .