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हमने उल्लेख नहीं किया है।' किन्तु उनका यह तर्क समुचित नहीं प्रतीत होता क्योंकि काव्य का प्रयोजन मम्मट के मत में धन ही न होकर धन भी है। डा. देवेन्द्रनाथ शर्मा के अनुसार अनैकान्तिकता का आधार लेकर हेमचन्द्र द्वारा स्वीकृत यश का भी खण्डन किया जा सकता है, क्योंकि यश का एकमात्र हेतु काव्य नहीं है।
आचार्य रामचन्द्र-गुपचन्द्र ने ग्रन्थारम्भ में ही नमस्कारात्मक मंगलपरक प्रलोक द्वारा ही नाट्य(काव्य)के प्रयोजन का उल्लेख कर दिया है।इन्होंने चतुर्वर्ग धर्मार्थकाममोक्ष पल वाला नाटक माना है।' इनके अनुसार जिस व्यक्ति के लिए जो पुरुषार्थ अभीष्ट है वही उसका प्रधान फल है, तदितर गौप फल है। आगे वे कहते हैं कि यद्यपि
1. धनमनैकान्तिकं व्यवहारकौशलं शास्त्रेभ्योऽप्यनर्थनिवार । प्रकारान्तरेपापीती न काव्यप्रयोजनतयात्माभिरूक्तमः ।
वही, पृ. 5 2. जैनाचार्यों का अलंकारशास्त्र में योगदान
- पृ. 69 3 चतुर्वर्गफ्लां नित्यं जैनी वाचमुपास्महे।
नाट्यदर्पण ।। ५. इष्टलक्षपत्वाच्च फ्लत्य यो यस्य पुरुषार्थोऽभीष्ट : स तत्य प्रधानं, अपरो गौपः।
नाट्यदर्पप ।/। की वृत्ति