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मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक ।
इन खंभों में पालिश बहुत चमकदार है-द्वार पर देवताओंके चित्र बीचमें पद्मासनज नमूर्ति है। भीतर भी वेदी के बाहर कमल, भीतर कमल, वेदीके पीछे दो हाथी ऊपर दो सिंह २४ चिन्ह - व यहां बहुत से कमल हैं - एक एकके भीतर कई कमल हैं। यहांकी पत्थर की कारीगरी आबूजीके जिन मंदिरोंकी कारीगरीसे मिलती है। यहां जो मूलनायक श्री नेमिनाथजीकी बड़ी मूर्ति थी वह बेलगाम शहरकी बड़ी वस्तीमें विराजित है । वर्ण कृष्ण है - यह मंदिर देखने योग्य है- दूसरी चतुर्भुज वस्ती है । इन तीन मंदि - रोंके सिवाय इस किले में और भी मंदिर थे क्योंकि किलेके बाहर और भीतर जो अब घर हैं उनमें द्वारके खंभे जो लगे हैं वे जैनमदिरोंके लगे हैं। सन १८८४ में दो बहुत ही सुन्दर नक्काशी के पत्थर एक बागमें खोदनेपर निकले थे इसी शताब्दी में दो राह राजाओंके शिलालेख किलेके मंदिरोंसे पाए गए हैं वे बम्बई रायल एसियाटिक सोसायटीको दे दिये गए हैं । यह प्राचीन कनड़ी भाषामें हैं । इनमें से एक में राष्ट्रकूट या राह वंशीय महाराज शेनद्वि० का नाम है - वंशावली कार्तवीर्य्य चतुर्थ और मल्लिकार्जुन तक गई है जो करीब ११९९ से १२१८ तक यहां राज्य करते थे | तब एक वीचा राजाका और उसके पुत्रोंका वर्णन है । फिर वह लेख कहता है कि सन् १२०५ या शाका ११२७ में पौषसुदी २ के दिन नत्र राज्यधानी वेणुग्राममें कार्तिवर्मा और मल्लिकार्जुन राज्य कर रहे थे तब श्रीयुत शुभचन्द्र भट्टारककी सेवामें राजा वीचाके बनाए गए राहोंके जैन मंदिरके लिये भूमि दान किये गये थे जो भूमि दी गई थी वे करवली जिलेमें