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मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक |
मानोंने इसे १३वीं शताब्दी में ध्वंश किया । बहुतसे वर्तमान में बने हुए मंदिरों में पुराने मंदिरोंके खण्ड व मसाले पाए जाते हैं । पंचासर पार्श्वनाथ जैन मंदिर में एक संगमर्मर की मूर्ति है जो पाटन के स्थापनकर्ता वनराजकी कही जाती है। इस मूर्तिके नीचे लेख है जिसमें बनराजका नाम व संवत् ८०२ अंकित है इसी मूर्तिकी बाईं तरफ वनराजके मंत्री जाम्बकी मूर्ति है। श्री पार्श्वनाथके दूसरे जैन मंदिर में लकड़ीकी खुदी हुई छत बहुत सुन्दर है तथा एक उपयोगी लेख खरतर गच्छ जैनियोंका है । दूसरे एक जैन मंदिर में वेदी संगमर्मरकी बहुत ही बढ़िया नक्कासीदार है जिसपर मूर्ति विराजित है ।
नोट - इस पाटन में जैनियोंका शास्त्रभंडार भी बहुत बड़ा दर्शनीय है यहां दोआने जैनी बसते हैं । उनके सब १०८ मंदिर हैं प्रसिद्ध पंचासर पार्श्वनाथका है जिसमें २४ वेदियां हैं । ढांढरवाड़ा में सामलिया पार्श्वनाथका बड़ा मंदिर है जिसमें एक बडी काले संगमर्मर की मूर्ति सम्पवतीराजाकी है। वहीं श्री महावीर - स्वामीका मंदिर हैं जिसमें बहुत अद्भुत और मूल्यवान पुस्तकोंके भंडार हैं । इनमें बहुतसे ताड़पत्रपर लिखे हैं । और बड़े २ संदूकोंमें रक्षित हैं ।
(४) चूनासामा - बड़बाली तालुका- यहां बड़ौधा राज्यभर में सबसे बड़ा जैन मंदिर श्री पार्श्वनाथजीका है इसमें बढ़िया खुदाईका काम है- इसी शताब्दी में ७ लाखकी लागत से बना है ।
(५) उन्झा - सिद्धपुर से उत्तर ८ मीक । कोड़ावाकुनवीका