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________________ १४२] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । और जुन्नत गुफाओंमें जो यादवोंने दान किये हैं उनसे पता चलता है कि कुछ यूनानी लोग यहां बस गए थे और उन्होंने बौद्धधर्म स्वीकार किया था। (See Hough's chris to anity in India P. 51). पहली शताब्दीमें यूनानी बुद्धिमान डिसमाइस मिश्रसे भारतको व्यापार केन्द्रोंको देखने आया था-अलेकनेंड्रियासे पन्टेनस ईसाई पादरी होकर सन् १३८ में आया था, वह कहता है कि यहां उसने श्रमण (जैन साधु), ब्राह्मण व बौद्ध गुरुओंको देखा जिनको भारतवासी बहुत पूजते थे क्योंकि उनका जीवन पवित्र था। ऐसा भी मालूम होता है कि उस समय भारतवासी अलेक ड्रियामें मए भी थे। सन् ई ० से २०० वर्ष पूर्वसे २०० ई० तक मिश्र निवासी लाल जातिसे तथा भीतर पैथान और टागोरसे बंगालकी खाड़ी व और पूर्वी किनारोंतक खास व्यापार चलता था। जो वस्तु भारतसे भेजी जाती थीं वे ये थीं । भोजन, शक्कर, चावल, कपड़े रुईके, रेशमका सूत, हीरे, पन्ने, मोती, लोहा, सुवर्ण । भारतीय फौलाद (Steel) बहुत प्रसिद्ध था । फारसकी खाड़ीसे पैलमैरातक बहुत व्यापार था । कोंकनके व्यापारियोंने सन् १८७८में बहुतसे सुन्दर मठ बनवाए थे। ये उनकी उदारताके नमूने हैं, गुजरातके क्षत्रप राजाओंमें सबसे बड़े राजा रमनने शतकर्णी लोगोंको दो दफे हराया और उत्तरकोंकण ले लिया-- (Indian Ant: VII 262 ). मसलीपटनके महीन कपड़े बहुत प्रसिद्ध थे। यह बड़ा भारी बाजार था अवीसीनियाकी राज्यधानी अदुलीसे भी व्यापार
SR No.010444
Book TitlePrachin Jain Smaraka Mumbai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1982
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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