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धार्मिक विद्वानोंको पैदा किया जिन्होंने संस्कृत प्राकृत ग्रन्थोंपर हिन्दी में टीका और भाष्य लिखकर जनताका भारी उपकार किया है । इनमें जयचंद्र, किसनसिंह, जोधराज, टोडरमल, दौलतराम, सदासुखजी छावड़ा आदिके नाम प्रख्यात हैं जिनका अधिक परिचय देनेकी आवश्यक्ता नहीं । राजपूताने में अनेक जगह जैसे - जैसलमेर, जयपुर आदिमें प्राचीन शास्त्रभंडार हैं जिनका अभीतक पूरा२ शोध नहीं हुआ है । वह दिन जैन संसारके लिये बड़े सौभाग्यका होगा जब प्राचीन मंदिरों, खण्डहरों, मूर्तियों, शिलालेखों और ग्रन्थोंके आधारपर जैन धर्मके उत्थान और पतनका जीता जागता इतिहास तैयार होकर विद्वत्समाजके सन्मुखं रक्खा जासकेगा। ब्रह्मचारीजीकी संकलित की हुई इन प्राचीन स्मारकोंकी पुस्तकोंको पढ़कर पाठकोंके हृदयमें यह भाव उठे बिना नहीं रहेगा कि :--
" अबतक पुराने खंडहरोंमें, मंदिरोंमें भी कहीं,
बहु मूर्तियां अपनी कलाका पूर्ण परिचय दे रहीं । प्रकटा रही हैं भग्न भी सौन्दर्यकी परिपुष्टता,
" दिखला रही हैं साथ हीं दुष्कर्मियोंकी दुष्टता ॥ १ ॥ यद्यपि अतुल, अगणित हमारे ग्रन्थ - रत्न नये नये, बहु वार अत्याचारियोंसे नष्टभ्रष्ट किये गये ।
पर हाय ! आज रहींसहीं भी पोथियां यों कह रहीं, क्या तुम वही हो, आज तो पहचानतक पड़ते नहीं ॥ २ ॥
हीरालाल जैन ।
गांगई । २९-९-२६
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