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________________ प्राचीन जैन सारका प्रतिष्ठा विजयसेन हीने कराई थी। इस अपूर्व मंदिरको शोभन नाम शिल्पीने वनवाया था। मुसल्मानोंने इसको भी तोड़ा तब पेथड संघपतिने जीर्णोद्धार कराया। लेख स्तम्भपर है संवत नहीं है। वस्तुपालके मंदिरसे थोड़े अंतरपर भीमासाह (या भैंसासाह) का बनवाया हुआ मंदिर है। इसमें १०८ मन तौलकी सर्व धातुकी श्री आदिनाथकी मूर्ति है जो वि०सं० १५२५ फागुण सुंदी १को गुर्नल श्रीमाल जातिके मंत्री मंडनके पुत्र पुत्री सुन्दर तथा गंदाने स्थापित की । इसके सिवाय दो मंदिर श्वे० व दो मंदिर दिगंवरी हैं। आबूके मंदिर संगमर्मरकी अपूर्व खुदाईके हैं, करोड़ों रुपयोंकी लागतके हैं । जगतभरमें प्रसिद्ध हैं। (३७) अचलगढ़-दिलवाड़ासे ५ मील उत्तरपूर्व । यहां -सोलंकी राजा कुमारपाल कृत शांतिनाथका जैन मंदिर है उसमें तीन मूर्तियां हैं। एक पर वि० सं० १३०२ है । पर्वतपर चढ़के कुंथुनाथका जैन मंदिर है। इसमें पीतलधातुकी मूर्ति सं० १९२७की है और उपर जाके पार्श्वनाथ, नेमनाथ व आदिनाथके मंदिर हैं। आदिनाथका मंदिर. चौमुखा.है व प्रसिद्ध है नीचे व ऊपर चारर पीतलकी बड़ी मूर्तियां हैं। कुल १४ मूर्तियां हैं तौल १४४४ -मन है। इनमें सबसे पुरानी मूर्ति मेवाड़ राजा कुंभकर्ण (कुंभ) के समा वि० सं० १५१८की प्रतिष्टित है।। (३८) ओरिया-अचलगढ़से २ मील उत्तर | इसे कनखल तीर्थ कहते हैं। यहां श्री महावीरस्वामीका जैन मंदिर है। एक ओर पार्श्वनाथ व दूसरी ओर श्री शांतिनाथ हैं। और ऊपर का चौमुखा है १४ मूर्तियां -
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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