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________________ • राजपूताना । (२४) वसंतगढ़ - अजारीसे ३ मील दक्षिण । यहां टूटे हुए जैन मंदिर हैं - एक तहखाने में मूर्तियां मिलीं । एकपर लेख है सं० १५०७ राणा श्री कुंभकरण राज्ये वसंतपुर चैत्ये । यहां कुछ धातुकी मूर्तियां निकली थीं जो पिंडवाड़ाके जैन मंदिरमें हैं, एकपर सं ० ७४४ है । (२१) वासा - रोहड़ा टे० से १ || मील उत्तरपूर्व । यहां जगदीश नामका शिवालय है इसपर एक जैन मूर्ति है । यह पहले जैन मंदिर था । (२६) कालागरा- वासासे २ मील | यहां श्री पार्श्वनाथका जैन मंदिर था, अब पता नहीं है। एक लेख सं० १३००का मिला है । उस समय चंद्रावतीका राजा आल्हणदेव था । (२७) कामद्रा - कीवरली स्टे० से ४ मील उत्तर | आवृके निकट ] यहां प्राचीन जैन मंदिर है, चौतरफ जिनालय हैं । एकके ऊपर तं० १०९१ का लेख है। एक और प्राचीन जैन मंदिर था जिसके पत्थर रोहेडीके जैन मंदिरमें लगे हैं। • (२८) चंद्रावती-आबूरोड स्टे ० से ४ मील दक्षिण । यह प्राचीनं. नगर था, दूरर तक खंडहर हैं । यह परमार राजाओंकी राज्यधानी था । आवृके दिलवाड़ेके प्रसिद्ध नेमनाथ मंदिरके बनानेवाले मंत्री वस्तुपालकी स्त्री अनुपम देवी यहांके पोड़वाड़ महाजन गागांके पुत्र धरणिगकी पुत्री थी । (२९) गिरवर - मधुसूदनसे करीब ४ मील पश्चिम | मूंगथलीसे ? मील मधुसूदन है । यहां टूटा हुआ जैन मंदिर है । विष्णु मंदिरका द्वार चन्द्रावतीसे लाया गया है, ऊपर जैन मूर्ति है ।
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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