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________________ www wwwwwwwwww १७२] प्राचीन जैन स्मारक । (१५) लास-पालोदीसे उत्तर पश्चिम १० मील यहां २ जैन मंदिर हैं एक श्री आदिनाथजीका है। (१६) जावल--यहां १४वीं शताब्दीका श्री महावीरजीका जैन मंदिर है। (१७) कातन्द्री-सुख्य मंदिरमें एक लेख है कि वि० सं० १३८९ फागुण सुदी - सोमे सर्व संघने समाधिमरण किया । नाम दिये हुए हैं। (१८) उदरत-धन्धापुरसे २ मील। यहां एक जैन मंदिर है। (१९) जीरावल-रेवाधरसे उत्तर पश्चिम ५ मील । पर्वतके नीचे जैन मंदिर है जो नेमिनाथका प्रसिद्ध है। यह मूलमें पार्श्वनाथ मंदिर था । पुराना लेख सं० १४२१का व पिछला सं० १४८३ का ओसवाल बनिया विशालनगर व कल्वनगर । (२०) वरमन-देवधर और मनधारके मध्य सुकली नदीके. पश्चिम एक प्राचीन नगर था । ग्रामके दक्षिण श्रीमहावीरस्वामीका जैन मंदिर सं० १२४२ का है। (२१) सिरोही या सिरणवा-पिंडवाड़ा प्टे० से १६ मील महाराव सैसमलने सन् १४२५ में वसाया। जैन मंदिर देरासरीके नामसे प्रसिद्ध है। चौमुखजीका मंदिर मुख्य है। जो वि० सं० १६३ ४में बना था। (२२) पिंडवाड़ा-यहां श्री महावीर स्वामीका जैन मंदिर सं० १४६६ का है। (२३) अजारी-पिंडवाड़ासे ३ मील दक्षिण | श्री महावीर . '. स्वामीका जैन मंदिर। एक सरस्वतीकी मूर्तिके नीचे सं०१२६९ है। ।
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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