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________________ राजपूताना। [१५७ (९) कापरदा-जि. हकूमत । यहां एक जैन मंदिर है जो इतना ऊंचा है कि ५ मीलसे दिखता है । यह १६ वीं शताब्दीके अनुमानका है। यह जोधपुरसे दक्षिण पूर्व २२ मील है । विसालपुरसे ८ मील है। (१०) पीपर नि. वेलारा-जोधपुरसे पूर्व ३२ मील व रेन स्टेशनसे दक्षिण पूर्व ७ मील । इस ग्रामको एक पल्लीवाल ब्राह्मण पीपाने बसाया था । यह कहावत है कि इसने सर्पको दूध पिलाया, उसने सुवर्णको पाषाण बना दिया, तब उसने सर्पको स्मृतिमें सम्पू नामकी झील बनवाई व अपने नामसे ग्राम वसाया । (११) वारलई-देसुरीसे उत्तर पश्चिम ४ मील। यहां सुन्दर दो जैन मंदिर हैं-एक श्री नेमिनाथजीका सन् १३८६का व दूसरा श्री आदिनाथजीका सन् १५४१ का। (१२) दीदवाना नगर-मकराना प्टेशनसे उत्तर पश्चिम ३० मील व जोधपुर शहरसे १३० मील । यह २००० वर्ष पुराना है । प्राचीन नाम द्रुद्वाणक है। यहां खुदाई करने पर एक पाषाण मूर्ति मिली थी जिस पर सं० २५२ था। वर्तमान सतहसे नीचे २० फुट जाकर मट्टीके .वर्तन मिलते हैं। यहांसे दक्षिण पूर्व दौलतपुरामें एक ताम्रपत्र संवत् ९५३का पाया गया है जो कन्नौजके महाराज राजा भोजदेवका है (Epigraphica Indica Vol.v) यहां निमककी झील है ३॥ मील x १॥ मील, जिसमें २ लाख वार्षिक आमदनी है । (सन् १९०९)। (१३) जसवन्तपुरा-आबूरोड प्टेशनसे उत्तर पश्चिम ३० मील । पर्वतके नीचे एक नगर है इसके पश्चिममें सुन्दर पहाड़ी है | इसपर पर्वतमें कटा हुआ एक चामुंडदेवीका मंदिर है इसमें
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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