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राजपूताना |
इसको राणा कुंभने सन् १४४२ और १४४९ के मध्य में अपनी मालवा और गुजरातकी विजयकी स्मृतिमें बनवाया ।
रामपाल द्वारके सामने एक जैन मठ है जिसको अब पहरेवालोंका कमरा Guard Room कर लिया गया है। इसमें एक लेख सन् १४८१ का है जो कहता है कि कुछ जैन प्रतिष्ठित पुरुषोंने यहां दर्शन किये थे ।
दक्षिणकी तरफ नौलखा भंडार और बड़े२ स्तम्भोंका कमरा है जिसको नौ कोठा कहते हैं । इन इमारतोंके बीचमें बड़े सुन्दर खुदे हुए छोटे जैन मंदिर हैं जिनको सिंगारचौरी कहते हैं । इनमें कई शिलालेख हैं । एक लेख कहता है कि इसको राणा कुंभके खजांचीके पुत्र भंडारी वेलाने श्री शांतिनाथजीकी प्रतिष्ठामें बनवाया था । दरवारके महलके पास एक पुराना जैन मंदिर है जिसको सतीस देवरी कहते हैं । इसके आंगन में बहुतसी कोठरियां हैं । Archealogical ourvey of India for 1905-6 में पृष्ठ ४३-४४ पर जो वर्णन दिया है वह यह है कि जैन कीर्तिस्तम्भ बहुत पुरानी इमारत है जो शायद सन् १९०० के करीब बनी थी । यह स्तंभ दिगम्बर जैनियोंका है। बहुत से दिगंबर जैनी- राजा कुमारपालके समयमें ( १२वीं शताब्दीका मध्य ) पहाड़ीपर रहते होंगे ऐसा • मालूम होता है । इंंग्रेजी शब्द हैं
It belongs to the Digambar Jains, many of whan seem to have been upon the hill in Kumarpal's time.
राजा कुम्भके जयस्तम्भके नीचे जो पुराना मंदिर है उसके लेखसे प्रगट है कि गुजरातके सोलंकी राजा कुमारपालने इस पर्वत के दर्शन किये थे । राजा कुंभके राज्यके समयमें यद्यपि श्वेताम्बर जैन