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________________ '१३४ ] . प्राचीन जैन स्मारक। जो ५०० फुट ऊंची है तथा ३ मील लम्बी व आध मील चौड़ी है। चित्तौड़का प्राचीन नाम चित्रकूट है, जो मोरी राजपूतोंके सर्दार चित्रंगके नामसे प्रसिद्ध है। इन मोरी राजपूतोंने सातवीं शताब्दीके अनुमान यहां राज्य किया था जिनका ध्वंश महल अव भी दक्षिण भागमें है । वापा रावलने सन् ७३४में इसे मोरियोंसे लेलिया । यह मेवाड़की राज्यधानी सन् १९६७ तक रहा फिर राज्यधानी उदयपुर नगरमें बदली गई । जर्नलने एसिया सोसायटी बंगाल नं० ५५ पृष्ठ १८में है कि चित्तोरगढ़के महलकी भीतरी सहनमें एक लेख नं० ५ है जो कहता है कि वैशाखसुदी ५ गुरुवार सं० १३३५को रावल तेजसिंहकी धर्मपत्नी जैतल्लदेवीने श्यामपा र्श्वनाथनीका मंदिर बनवाया, इसके लिये उसके पुत्र रावल कुमार-- सिंहने भूमि प्रदान की । कनिंघम रिपोर्ट नं० २३में सफा १०८में है कि गणेशपोलपर एक खंभेके ऊपर एक लेख सं० १९३८का है जिसमें जैन यात्रियोंका लेख है। प्रसिद्ध जैनकीर्तिस्तंभके विषयमें लिखा है कि यह ७५॥ फुट ऊंचा है, ३२ फुटका व्यास नीचे व १५ फुट ऊपर है । यह बहुत प्राचीन है । इसके नीचे एक पाषाणखंड मिला था जिसमें लेख था-श्री आदिनाथ व २४ जिनेश्वर, पुंडरीक, गणेश, सूर्य और नवग्रह तुम्हारी रक्षा करें . सं० ९५२ वैसाख सुदी ३० गुरुवार ॥ यहां सबसे प्राचीन मकान जैन कीर्तिस्तम्भ है जो ८० फुट ऊंचा है जिसको बधेरवाल महाजन जीजाने १२वीं या १३वीं शताब्दीमें जैनियोंके प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथकी प्रतिष्ठामें वनवाया। यहां प्रसिद्ध जयस्तम्भ भी है जो १२० फुट ऊंचा है
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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