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________________ मध्य भारत। [१११ - (१७६५-६८) फिर मानसिंहने (१७६८-७९) फिर भारतीचंदने (१७७५-७६) फिर विक्रमजीतने (१७७६-१८१७) फिर धरमपालने (१८१७-३४) फिर तेनसिंहने (१८३४-४१) फिर सुजानसिंहने (१८४१-१८५४) फिर हमीरसिंहने (१८५४ -१८७४) पीछे उसके भाई प्रतापसिंह राज्य कर रहे हैं । सन् १९०१में यहां जैनी १८८४ थे। (१) ओरछानगर-झांसीके पाम-वीरसिंहदेवका बड़ा मकान व किला है, तथा जहांगीर महाल है । बहुतसे मंदिर फैले पड़े हैं निनमें सबसे बढ़िया चतुर्भुज मंदिर है। (२) अहार ता० बलदेवगढ़-यह किसी समय जैनियोंका प्रसिद्ध स्थान था। बहुतसी खंडित जैन मूर्तिये इसके चारों तरफ छितरी हुई हैं। (३) जटारिया-ता. जटालिया-वर्तमानमें जो यहां जैन मंदिर है उसमें बहुतसी मूर्तिये १२ वीं शताब्दीकी है। ये सब दिगम्बर जैन हैं। उनमें मुख्य श्री आदिनाथ, पारशनाथ, शांतिनाथ, चन्द्रप्रभु भगवानकी हैं। (४) पपौनी-ता० टीकमगढ़-यहांसे उत्तरपूर्व ८ मील । इसका प्राचीन नाम पम्पापुर है यह प्राचीन स्थान है । जैनी तीर्थ मानते हैं। बहुतसे मंदिर हैं। (१७) दतिः इसकी चौहद्दी है-उत्तरमें ग्वालियर, जालान; दक्षिणमें ग्वालियर झांसी; पूर्वमें संथार, झांसी, पश्चिममें ग्वालियर ।
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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