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________________ मध्य भारत। [१०६ यह बडवानी तीर्थ दिगम्बर जैनियोंका पूज्यनीय तीर्थ है। उनके शास्त्रोंमें यह प्रमाण है कि रावणके भाई कुंभकरण और रावणके पुत्र इन्द्रजीतने यहां मुक्ति पाई। इनके चरणचिह्न पर्वतकी चोटीके मंदिर में अंकित हैं। ' प्रमाणबडवाणी परणयरे दक्षिण भायम्मि चूलगिरि सिहरे । इन्दजीद कुम्भयणो णिचाण गया णमो तेसिं ।। १२ ॥ (प्राकृत निर्वाणकांड) भाषावडवाणी वडनयर मुचंग, दक्षिण दिश गिरित्रूल उत्तंग । इन्द्रजीन अरु कुम्भकर्ण, ते वन्दी भवसायर तर्ण ॥१३॥ (भापा निर्वाण कांड ) पश्चिम विभागकी रिपोर्ट सन् १९१६ में चाननगनानीकी मूर्तिक सम्बन्धमें इंजीनियर मि० पेजने लिखा है कि बावनगजाकी मूर्ति कहीं कहीं खण्ड होगई है इसलिये इसकी रक्षार्थ यह उचित है कि जो भाग मूर्तिक ठीक हैं उनपर नीचे लिखा मसाला लगा देना चाहिये जिससे पाषाण बना रहे-" Szarebuney's fluid - stone preservative " जहां २ मध्यमें खण्ड होकर चट्टान निकल आई है वहां Portlund Cement चारकोलके साथ लगाना चाहिये । जिस तरह होसके मूर्तिकी रक्षा करनी चाहिये क्योंकि यह मूर्ति बहुत प्राचीन है। १५] झाबुआ राज्य । बारी-झाबुआसे १६ मील। यहां ग्राममें एक जैन मंदिर है। .
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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