SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१२) पाये जाते हैं वे इन्हीं कलचुरियोंकी सन्तान हैं। अनेक भारी मंदिर जो आजतंक 'विद्यमान हैं वे प्रायः इसी गिरती के समयमें 'निर्माण हुए हैं । जैनियोंके मुख्य तीर्थ इस प्रांतमें बैतूल जिलेमें मुक्तागिरि, निमाड़ जिलेमें सिद्धवरकूट और दमोह निलेमें कुंडलपुर हैं । मुक्तागिरि, अपरनाम मेढागिरि और सिद्धवरकूट सिद्ध"क्षेत्र हैं जहांसे प्राचीन कालमें करोड़ों मुनियोंने मोक्षपद प्राप्त किया है । मुक्तागिरिमें कुल अड़तालीस मंदिर हैं जिनमें मूर्तियोंपर विक्रमकी चौदहवीं शताब्दिसे लगाकर सत्तरहवीं शताब्दि 'तकके उल्लेख हैं । इन मंदिरोंमें पांच बहुत प्राचीन प्रतीत होते हैं और सम्भवतः बारहवीं तेरहवीं शताब्दिके हैं । सिद्धवरकूटके प्राचीन मंदिर ध्वंस अवस्था हैं। कुछ मूर्तियोंपर पन्द्रहवीं शताव्दिके तिथि-उल्लेख हैं । कुण्डलपुरके मंदिरोंकी संख्या ५२ है। मुख्य मंदिरमें महावीरस्वामीकी बृहत् मूर्ति है और १७हवीं शताव्दिका शिलालेख है । मंदिरोंसे अलंकृत पर्वत कुंडलाकार है इसीसे इसका नाम कुण्डलपुर पड़ा है, पर कई भाइयोंको इससे 'महावीरस्वामीकी जन्मनगरी कुन्दनपुरका भ्रम होता है। इन तीनों 'क्षेत्रोंका प्राकृतिक सौन्दर्य बड़ा ही चित्तग्राही और प्रभावोत्पादक है। वरार । • इसका प्राचीन नाम 'विदर्भ' पाया जाता है । पं० तारानाथ तर्कवाचस्पतिने इसकी व्युत्पत्ति इस प्रकार की है:-विगताः दर्भाः कुशाः यतः ' अर्थात् जहां 'दर्भ न ऊगे, पर यह निरी व्याकरणकी खींचातानी ही प्रतीत होती है। यह भी दन्तकथा है कि यहां विदर्भ नामका एक राजा होगया है इसीसे इसका
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy