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________________ 'मध्य भारत। उदयराज व खोदनेवाले तील्हणका वर्णन है। संवत ११४५ भादों सुदी ३ सोमवार ।। नोट-इससे विदित होता है कि दूबकुंडमें देवसेन दिगंबराचार्य बहुत प्रसिद्ध होगए हैं तथा राजा भोज मालवाधीशके • समयमें शांतिसेन मुनिने वाद करके विजय प्राप्त की थी। जायसपुर निवासी ही जायसवाल जातिके लोग हैं । यह जायसंपुर अवधका जायस है या दूसरा है सो पता लगाना योग्य है। "जैसवाल जातिके लिये यह लेख बड़े महत्त्वका है । राजा विक्रमसिंह भी जैन भक्त प्रतीत होता है। (२१) गढवल-परंगना सोनगच्छ जिला शोजापुर । सोनकच्छसे उत्तर ६ मील प्राचीन ग्राम है । यह बहुत प्राचीन स्थान है। बहुतसे पुराने सिक्के मिलते हैं। बहुतसे मंदिर ध्वंश पड़े हैं। जैन मूर्तिये बहुतसी हैं जिनमें एक ९ फुट लम्बी है व दूसरी १४ फुट लम्बी है, परन्तु इसके पग खंडित हैं। (२२) खिलचीपुर-नि० मंदसोरं ग्रामके उत्तर एक कूएंपर सूवतेहून मिहिरकूलके विजयिता राजा यशोधर्मनका कथन है। सन् ५३३-५३४ । इस कुएको किसी दक्षने संवत ५८० में बनवाया था। (२३) कोटवल या कुटवार-पर्गना नूराबाद जिला तोबरगढ़। नूरावादके उत्तर-पूर्व १० मील एक पहाड़ीपर बसा है। प्राचीन नाम कमंती भोजपुर या कमंतलपुर है । बहुत प्राचीन स्थान है। पुराने सिक्के मिलते हैं। एक वर्ग मील तक ध्वंश स्थान हैं। एक महावीरजीके मंदिरके बाहर कुआं १२० फुट गहरा है । . "
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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