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________________ ८७ प्राचीन जैनइतिहास नामसे प्रसिद्ध हुई और तमीसे लोग इसे (गंगाको.) तीर्थ मानने लगे। (१६) भागीरथको केवलज्ञान हुआ और कैलाश पर्वतसे वह मोक्ष गया। पाठ चौदहवाँ। तृतीय तीर्थकर श्री संभवनाथ । (१) भगवान् अजितनाथके मोक्ष जानेके तीस कोटि लास्त्र सागर बाद तीसरे तीर्थकर संभवनाथ उत्पन्न हुए थे। (२) फागुण सुदी के दिन भगवान् गर्भमें आये । और इन्द्रोने गर्भ कल्याणक उत्सव मनाया। (३) भगवान् संभवनाथके पिताका नाम दरथराय और माताका नाम सुषेणा था । इनका वंश इश्वाकु और गोत्र काश्यप था। ये मायोव्याके राजा थे। (४) भगवानका जन्म कार्तिक शुदी पूर्णिमाके दिन अयोघ्यामें हुआ था । भगवान् संभवनाथ जन्मसे ही तीनज्ञानके धारी स्वयंभू थे। आपका भी जन्म कल्याणक उत्सव इन्द्रोंने किया । (६) इनकी मायु साठ लाख पूर्व और शरीर चारसो धनुषका था। (६) ये पंद्रह लाख पूर्व तक कुमार अवस्थामें रहे और चुमालीस लाख पूर्व तक राज्य किया । भगवान् संभवनाथका भी विवाह हुआ था।
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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