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________________ प्रथम भाग : ६ इस पर चक्रवत ने कहा कि संसारमै यमकी दादसे निकालनेवाला कोई नहीं है इसलिये है वृद्ध ! तुम तप धारण करो । तब बाहजने कहा कि आपका कहना उचित है पर सुना जाता है कि आपके सब पुत्र कैलाशकी साई खोदते हुए मरण प्राप्त हो गये है सो माप क्यों नहीं उप धारण करते । इसपर चक्रवर्तीको बहुत खेद हुआ और वे अचेत हो गये । फिर मुघ आनेपर जल क दुसरे मनुष्यने भाकर पुत्रोंके मरणके समाचारकी पुष्टि की तब फिर खेद कर विदर्भा रानीके पुत्र भागीरथको राज्य दे मापने तप धारण किया। (१२) इधर देवने उन साठ हजार पुत्रोको सचेतकर कहा कि तुम्हारे पिताने तुम्हारे मरणके समाचार सुनकर तप धारन किया है और भागीरथको राज्य दिया है। इसपर उन पुत्रनि मी तप धारण किया। ये सब पुत्र चरम-शरीरी-उसी भक्के मोक्ष जानेवाले थे। भागोस्थने श्रावस्के नत लिये। . (१३) सगर चक्रवर्ती और उनके पुत्रोंको केवलज्ञान हुमा और वे सब मोक्ष गये। (११) जब भागीरथने चक्रवर्ती सगरके मोक्ष जाने के समग. चार सुने तब उसने भी अपने पुत्र वरदत्तको राज्य दिया और उप धारण किया। (१९) भागीरथके दीक्षागुरु शिवगुप्त थे। भागीरयने कैलाश पर्वतपर गंगा के किनारे तप धारण किया था। देवाने आकर उसी गंगाके नल्से भागीरथका अमिक लिया। भागीरथके चरणों से गंगाके जलका सयोग हो जाने के कारण गंगा नदी भागीरथी
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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