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प्राचीन जैन शंतहास।
पाठ ग्यारवा। ऋषभ युगकी स्कुट वात। (१) एक जगह वर्णन करते हुए पूर्व इतिहासकारोंने लिखा है कि उस समयमें भी भील आदि जातियां स्यामवर्ण थीं। छाल
आदिसे अपने अंगोंको ढोकती थीं। गोमची आदिके आभूषण पहिनतीं थीं। चमरी गायके वालोंसे इन जातियोंकी स्त्रिया अपने बाल गूंथा करती थीं।
(२) भरत चक्रवर्तीकी दिग्विजयके समयमें रास्तेमें पड़नेवाली नदियोंके नामः
सुमागधी, गंगा, गोमती, कपीवती, खेश्या, गंभीर, कालतोया, कौशिकी, कालमही, ताम्रा, अरुन, निघुग, उदुंबरी, पनसा, तमशा, प्रमशा, शुक्तिमती, यमुना, वेणुमती, नर्मदा, विशाला, नालिका सिंधु, पारा, निष्कुदरी, वहुवज्जा, रम्या, सिकतनी, कुहा, समतोया, कुंना, निर्विघ्या, जंबूमति, वसुमती, शर्करावी, सिमा, रुतमाला, परिना, पनसा, अवंतिकामा हस्तिपानी, कागंधुनी, गधी चर्मण्वती शतभागा, नदा, करमवेगिनी, चुद्धितापी, रेवा, सप्तपारा, कौशिकी, शोण नद), तैला, ईशुपती, नक्रखा, बगा धपना, वैतरणी, मापवती, महेंद्रका, शुष्क, गोदावरी, मुप्रयोगा, कृष्णवर्णी, सन्नीरा, प्रवेणी, कुब्जा, धैर्या, चुर्णा, वेणा, सूकरिका, अवर्गा, भीमरथी, दारुवेणा, नीरा मुला, वाणा, केतवा, करीरी, प्रहरा, मुररा, पारा, महन्य, वापी, लांगलखातिका पर्वताकि नाम: