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________________ प्रथम भाग। (३) मरत पहिले चक्रवर्ती और छहों खंडके स्वामी थे। अतएव इनके नामपर ही आर्य लोगोंके रहनेका स्थान भारतवर्ष कहलाया: । (8) मरतका शरीर बहुत ही सुंदर था और वह ५०० धनुष उंचा था। इनमें सब गुण प्रायः भगवान् ऋषभदेव हीके समान थे। (१) छहों खंडोंके मनुष्य, पशु और देवादिकोंमें जितना बल था उससे कई गुना ज्यादह वल चक्रवर्ती भरतकी मुनामें था। (६) भरतको भगवान् ऋषभदेवने स्वयं पटाया था । यो तो भरतको भगवानने सब विधाओं में प्रवीण कर दिया था, पर मुख्यतया इनको नीतिशास्त्रका विद्वान् बन या था। इन्हें नृत्यकला भी सिखलाई थी। (७) भगवान् ऋषभदेव जब तप करनेको उद्यत हुए तब उन्होंने भरतको सम्राट पद देकर राज्याभिषेकका बड़ा भारी उत्सव किया । ( नग्नने, जब भगवान् ऋषभदेव तपके लिये उयत हुए तब भगवानकी आज्ञासे सुवर्ण, रत्न, घोड़ा, हाथी आदिका महादान दिया था। (९) जब भगवान् वृषभने दीक्षा धारण की थी तब महाराज भरतने बड़ी भक्तिके साथ भगवान की पूजा की थी। आन, विमोरा आदि कई वन-फल भक्तिके वश भगवानको चढाये थे।
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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