SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४५ प्राचीन जन इतिहास । बड़ा उत्सव मनाया । दाहकी भस्मको मन्तकादिपर धारण किया। इन तीन प्रकारके महापुरुषोंक दाइसे तीन प्रकारकी अग्निकी स्थापना करनेका देवोंने श्रावकों को उपदेश दिया । और प्रतिदिन पांचवीं प्रतिनातकके धारक श्रावकोंको इन अग्नियोंमें होमादि करनेकी आना दी। (१३) भगवान अपमदेवका शरीर हट जानेपर भरत चक्र वतीने बहुत शोक किया था, पर अंतने वृषमसेन गणधरके उपदेशसे वह शांत हुआ। पाठ सातवा । भरत चक्रवर्ती। (१) भगवान् ऋषभदेवके सबसे बड़े पुत्र महारान भरत थे। ये चक्रवर्ति थे । अवसर्पिणी चालके सबसे पहिले चक्रवर्ति ये ही हुए हैं। जिस समय ये गर्ममें आये उस समय इनकी माता यशस्वती महारानीने चार स्वन देखे ये-पहिला स्वप्न समस्त पृथ्वीका मेरु पर्वत द्वारा निगला जाना, दुसरा स्वप्न सूर्य और चंद्रमा सहित मेरु पर्वत, तीसरा स्वप्न हंसों सहित सरोवर और चौथा स्वप्न चंचल लहरों सहित समुद्र, इस प्रकार चार स्वप्न देखे थे । इन स्वप्नोंका फल महारानी यशस्वतीने अपने पति ऋषभदेवसे पूछा उन्होंने इनका फल चक्रवति और चरम शरीरी पुत्रका गर्भ में आना बताया। (२) महारान भरतका जन्म चत्र कृष्णा नवमी के दिन उत्तरापाढ नक्षत्र में हुना था।
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy