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________________ ४५ प्राचीन जैन इतिहास । उसके संबंधमें भगवानसे भरतने प्रश्न किया था कि प्रभो ! इसका परिणाम क्या होगा तब भगवानने उत्तर दिया था कि चतुर्थ मालमें तो इस वर्णसे लाभ होगा पर पंचम कालमें यह वर्णन धर्मका द्रोही वन नायगा। (१७) महाराज मरतने सोलई स्वप्न देखे थे उनका फल भी ऋषभदेवने यही बताया था कि पंचम कालमें (पार्श्वनाथ स्वामीके बाद ) धर्ममें क्रमशः न्यूनता हो जायगी। (४८) भगवान् ऋषभ देवका शिष्य यों तो विश्व ही था, पर आपकी सभाका चतुर्विध संघ इस प्रकार था ८४ गणधर ४७५० चौदह पूर्वक पाठी (पढनेवाले) ४१९० शिक्षक ९००० अवधिज्ञानी मुनि २०००० केवलज्ञानी २०६०० विक्रिया ऋद्धिके धारक साधु १२७५० मन.पर्ययज्ञानके घारक साधु १२७५० वादी साधु ८४०८४ ३५०००० बाह्मी आदि आर्यिकाएँ ३०००० आवकके व्रतोंको धारण करनेवाले श्रावक ६००००० सुवृता आदि श्राविकाय (श्रावक व्रतकी धारक स्त्रियों) . . इन सोलह स्वप्नों का वर्णन भरतके पाठमे रिया गया है।
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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