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________________ प्रथम भाग । । थी । भगवान् मंडपकी वेदिकामें सिंहासन के ऊपर अधर विराजमान रहते थे । भगवानके ऊपर तीन रत्नमय छत्र लगे थे और 1 चौंसठ चमर दुलते थे । यह पृथ्वीसे बहुत ऊँचा था । इसमें नारह समायें थीं जिनमें बारह प्रकारके जीव भगवान्का उपदेश सुनते थे । वे वारह प्रकारके जीव इस प्रकार थे - १ ले कोठेमें गणधर - भगवानके उपदेश ग्रहणकी योग्यता रखनेवाले माधु, २रे कोटे में कल्पवासी देवोंकी देवांगनायें, इरेमें आर्यिका - साध्वी और गृहस्थ मनुष्यों की स्त्रिया, ४थेमें ज्योतिष्क देवोंकी देवांगनाएँ, पांचवे में व्यंतर देवोंकी देवागनाएँ, छठवे में भवनवासिनी देवागजाएं, सातवें में भवनवासी देव, आठवेमें व्यंतर देव, नौवेमें ज्योतिष्क देव, दशवेमें कल्पवासी देव, ग्यारहवेंमें चक्रवर्ती, राजा महाराजा और सर्व साधारण मनुष्य, चारहवे में सिंह, गाय, बैल, हिरण, सर्प आदि तियंच - पशु | इस प्रकार वादों कोठोंके बारह I प्रकारके प्राणी बैठकर उपदेश सुना करते थे। भगवान्की सभाम किसी भी प्राणीको आनेकी मनाही नहीं होती थी, सब आ सकते और भगवानका उपदेश सुन सकने थे, यहांतक कि भगचानका उपदेश पशुओं को भी सुननेका अवसर दिया जाता था । मनुष्य मात्र भगवानकी समामें एक ही कोठे में बैठते थे। भगवानकी दृष्टिमें माघारणसे साधारण और बडा बडा आदमी समान था । भगवान की शातिके प्रभाव से पशुत देर छोड देते थे और सिह. गाय आदि परस्पर के विरोधी पशु भी एक स्थानपर बैठकर भगचानका उपदेश सुनते थे । भगवानका उपदेश (विना इच्छा के ) * ४०
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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