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________________ प्राचीन जैन इतिहास L (१८) भगवान्ने विवाहका नियम इस प्रकार बनाया था । (१) शूद्र - शूद्रकी कन्यासे साथ विवाह करे । (२) वैश्य - वैश्यकी और शुद्रकी कन्या के साथ विवाह करे । (३) क्षत्रिय - क्षत्रिय, वैश्य और शद्रकी कन्याके साथ विवाह करे । ३५ उस समय वर्ण भेद था, जाति भेद नहीं था । (१९) उस समय अपने अपने वर्णोंकी भाजीविका छोड़ कर दूसरे वर्णोंकी आजीविका कोई नहीं कर सकता था । I (२०) भगवान् ने भी अपने पिता के ही अनुसार हा, मा, और धिक्कार ऐसे शब्दोंके बोलनेका दंड विधान किया था । क्योंकि उस समयकी प्रजा बड़ी सरल, शांत और भोली थी । इसलिये वह इतने ही दंडको बहुत कुछ समझती थी । (२१) फिर भगवान् ने एक एक हजार राजाओंके ऊपर चार महामंडलेश्वर राजाओं की स्थापना की । इनके नाम इस भौति है. - हरि, अकंपन, काश्यप और सोमप्रभ । इन चारों ही राजाओंने चार वशोंकी स्थापना की । हरिने हरिवंश, अकंपनने नाथवंश, काश्यपने उग्रवंश और सोमप्रभने कुरुवंश चलाया । ये चारों महामंडलेश्वर, उक्त चारों वंशक नायक हुए | तथा भगवानूने अपने पुत्रोंको भी पृथ्वी व अन्य संपत्ति बाँटी । I (२२) भगवान्ने प्रजापर उसको न अखरनेवाला बहुत कम कर लगाया ।
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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