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________________ प्राचीन जैन इतिहास | (५) इतिहासकारोंने लिखा है कि इन आर्य लोगोंका स्वभाव सरल और शान्त था 1 (६) ये रोंग बहुत दिनों तक पंजाबकी मटियोंकि किनारे किनारे बसे रहे । ये लोग विशेष गेंहू और जौकी खेती करते थे । हिन्दुस्थान में आनेके पहिले अग्निकी पूजा किया करते थे फिर यहाँपर आकर वर्षासे खेती की उपज होना देखा तो इन्द्रकी मी पूजा करने लगे । फिर यम, सूर्य, वरुण, रुद्र, प्रातः काल ज्यादिकी भी पूजा करने लगे । (७) जब माय पजाब में आये तब पहिले तो द्राविड़, कोल मादि जातिये से लड़े, पर प.छेसे उनमें मिल गये और दोनों के द्वारा संतान - वृद्धि होने लगी । इन लोगों में छुआछूत नही थी । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये चार वर्ण आर्य लोगोंने माने है । इन वर्णोकी स्थापना के विषय में वर्तमान के इतिहासकार इस प्रकार अपना मत देते हैं:--- (१) उक्त आर्वजातियोंकी व्यक्तियां अपने अपने घरेलू कार्यो में व्यस्त रहनेके कारण देवताओकी स्तुति क्ठ नहीं कर सकती थीं अतएव प्रत्येक जातिमेसे कुछ कुछ घरोंको यह काम करनेके लिये नियत कर दिया । पीछेसे ये ही घर ब्राह्मण वर्णके कहलाये । (२) इसी तरह हर जतिनेसे हटे बट्टे लडाकू घरो लड़ाई के लिये नियत कर दिया ये लोग क्षत्रिय वर्णके लाये। } (३) जो लोग व्यापर करते, सेती करते. पशु पालन करते थे वे लोग वश्य कहलाते थे ।
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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