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________________ प्रथम भाग । ११४ (१५) श्रीविनयकी स्त्री ताराको विद्याधर हर कर ले गया -था जिसे युद्ध द्वारा श्रीविजय वापिस लाया । पाठ पंचवीसवाँ । तीर्थकर वासुपूज्य (बारहवें तीर्थकर ) (१) भगवान् श्रेयांसनाथके चोपन सागर बाद वासुपूज्य तीर्थकर उत्पन्न हुए। इनके जन्मसे बहत्तर लाख वर्ष क्रम पोनपल्य (तीन चतुर्थाश ) समय पहिलेसे धर्ममार्ग बंद हो गया था। (२) आषाढ वदी छठको भगवान् वासुपूज्य माता के गर्म में आये | माताने सोलह स्वप्न देखे । गर्भमें आनेके छह माह 'पूर्वमे जन्म होने तक पद्रह माह रत्नोंकी वर्षा देवोंने की व गर्म कल्याणक उत्सव मनाया । ( 3 ) आपके पिताका नाम वसुपूज्य और माताका नाम जग्रावति था । वश इक्ष्वाकु और गोत्र काश्यप था । पिता वसुपूज्य चंपापुरीके राजा थे । यहा पर भगवान् वासपूज्यका जन्म फाल्गुन वदी चतुर्दशीको हुमा । इन्द्रादि देव ने मेरुपरंतपर ले जाना, अभिषेक करना आदि जन्म कल्याणकका टासव क्रिया । (४) आपकी मायु बहुत्तर काख वर्षकी थी और शरीर पिचहत्तर धनुष ऊँचा था । आपका वर्ण कुंकुंमके समान (लाल) था| (५) आपके साथ खेलनेको स्वर्गसे देव भाया करते थे और चहींसे आपके लिये वस्त्राभूषण आते थे । (६) भाप अठारह लाख वर्ष तक कुमार अवस्था रहे ।
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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