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________________ १०१ प्राचीन जैन इतिहास राज्य प्राप्तकर छह लाख पचास हजार पूर्व और चौवीस पूर्वाग उक राज्य किया। (८) आपका विवाह हुआ था। (९) एक दिन दर्पणमें मुँह देखते देखते आपको वैराग्य उत्पन्न हुआ। तब अपने पुत्र श्रीमान् वरचंद्रको बुलाकर राज्याभिषेक पूर्वक राज्य दिया और आपने पौष वदी एकादशी के दिन एक हजार राजाओं सहित सवरित नामक वनमें तप धारण किया । वैराग्य होने ही लौकांतिक देवोंने आकर स्तुति की थी। और इन्द्रादि देवोंने मभिषेकपूर्वक तप कल्याणक उत्सव पूर्वके तीर्थकरोंकि समान मनाया था। जिस पालकीपर चढ़कर भगवान् वनको पधारे थे उसका नाम विमला था । और वह स्वर्गसे देवोंद्वारा लाई गई थी। तप धारण करते ही आपको चौथा मन पर्यय ज्ञान उत्पन्न हुआ। (१०) पहिले ही आपने दो दिनका उपवास धारण किया और उसके पूर्ण हो जानेपर नलिन नामक नगरमें सोमदत्त रानाके यहां आहार किया। इसपर देवोंने रत्न वर्षा आदि पंचाश्चर्य किये। (११) तीन मास तक आपने तप किया जिसके कारण मिती फागुण वदी सप्तमीको चार कर्मोका नाश हुआ और भगवान् चंद्रप्रभु केवलज्ञानी चने । केवलज्ञान होनेपर इन्द्रादि देवों द्वारा समवशरणकी रचना की गई व स्तुति पूनादिसे पूर्वके तीर्थककरोंके समान ज्ञान कल्याणक उत्सव मनाया गया । फेवलज्ञान
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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