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________________ प्रथम भाग | १०० पाठ उगनीसवाँ । चंद्रप्रभु (आठवें तीर्थंकर ) (1) सुपार्श्वनाथ - स्वामी के मोक्ष जानेके नौसो करोड सागर बाद भगवान् चंद्रप्रभुका जन्म हुआ । (२) चैत्र वदी पंचमीकी रात्रिको आप माताके गर्भ में आये । गर्भमें आनेपर पूर्वके तीर्थकरोके समान इनकी माताने भी सोलह स्वप्न देखे | गर्भ में आने के छह माह पूर्वसे और गर्म में रहने तक इन्द्रादि देव ने रत्नांकी वर्षा की और गर्भकख्याणकका उत्सव मनाया । माताकी सेवा देवियोंने की। (३) आपकी माताका नाम लक्ष्मणा और पिताका नाम महान था । महाराज महासेन चन्द्रपुरीके राजा थे । आपका वश इश्वाकु और गोत्र काश्यप था । ( 8 ) पौष शुदी ग्यारसको आपका जन्म हुआ । जन्मसे ही आप तीन ज्ञान घरी थे । जन्म होते ही इन्द्रादि देवोंने मेरु पर्वत पर ले जाना, अभिषेक करना, स्तुति करना आदि जन्म कल्याणक के उत्सव सम्बंधी कार्य किये । (५) आपके साथ खेलने को स्वर्गसे देव आया करते थे और स्वगसे ही वस्त्राभूषण आते ये ! (६) आपका शरीर डेहसो धनुष ऊँचा था । आयु दशलाख पूर्वकी थी। (७) अढाई लाख पूर्व तक आप कुमार अवस्था में रहे फिर १. बनारस के समीप चन्द्रपुरी नामक छोटीसी चरती है ।
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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