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धनेका काम करने लगे। कुछ समय बाद आप वहांसे वापिस सूरत आगये । यहां आकर एक दो जगह नौकरी की। फिर टोपी और कपड़े की दुकान प्रारम्भ की। किन्तु वह ठीक नहीं चली, तब सूरती पगड़ी बांधनेका काम प्रारम्भ किया । फिर कुछ समय बाद आपने वैष्णवोंके बृहत् मंदिरमें काचकी चूड़ियोंकी और उसके साथ ही साथ कपड़े की एक दूकान खोली । इस दुकानसे आपको उत्तरोत्तर अच्छी आमदनी होती गई और धीरे२ वहां अन्य कई कपड़की दुकानें होगईं तथा यहां एक अच्छा बाजार बन गया । कपड़े के अच्छे व्यापारके कारण आप 'कापड़िया' कहलाने लगे । बृहत् मंदिरके कपड़े के बाजार के संस्थापक आप ही थे ।
सेठ किसनदासजीके ६ संतानें हुईं। उनमें चार पुत्र १ -मगनलालजी, २ - जीवनलालजी, ३-मूलचंदजी, ४ - ईश्वरलालजी और दो पुत्रियां १ - मणीबहिन, २ - नानीबहिन थीं। इनमेंसे मगनलालजीका २४, और जीवनलालजीका ४९ वर्षकी आयुमें स्वर्गवास होगया। तीसरे मूलचंदजी कापड़िया (हम) ने गुजराती, गंगरेजी, हिन्दी, संस्कृत और धर्मका ज्ञान प्राप्त करते हुये पिताजीके व्यापार किया और फिर ' दिगंबर जन' पत्र निकालना प्रारम्भ किया। उसके बाद 'जैन विजय प्रेस', जैनमिश्र, जैन महिलादर्श और दिगम्बर जैन पुस्तकालय आदि द्वारा जैन समाजकी जो सेवा बन सकी सो की और कर रहे हैं, तथा आजन्म करनेकी हार्दिक अभिलाषा है।
हमारे भाई ईश्वरकाजी बम्बई ममकी दुकान करते हैं।